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[प्रज्ञापनासूत्र
पंचेन्द्रिय कार्मण-शरीर । इस प्रकार जैसे तैजस-शरीर के भेद, संस्थान और अवगाहना का निरूपण (सू. १५३६ से १५५१ तक में) किया गया है, उसी प्रकार से सम्पूर्ण कथन (एकेन्द्रियकार्मणशरीर से लेकर) अनुत्तरौपपातिक (देवपंचेन्द्रिय कार्मणशरीर) तक करना चाहिए ।
विवेचन-कार्मणशरीर : तैजसशरीर का सहचर - जहाँ तैजसशरीर होगा, वहाँ कार्मणशरीर अवश्य होगा और जहाँ कार्मणशरीर होगा, वहाँ तैजसशरीर अवश्य होगा । दोनों का अविनाभावी सम्बन्ध है । तैजस-कार्मण दोनो की अवगाहना का विचार विशेषत: मारणान्तिकसमुद्घात को लक्ष्य में लेकर किया गया है । कार्मणशरीर भी तैजसशरीर की तरह जीवप्रदेशों के अनुसार संस्थानवाला है । इसलिए जैसे तैजसशरीर के प्रकार, संस्थान और अवगाहना के विषय में कहा गया है, वैसे ही कार्मणशरीर के प्रकार, संस्थान एवं अवगाहना के विषय में कथन का निर्देश किया गया है। पुद्गल-चयन-द्वार
१५५३. ओरालियसरीरस्स णं भंते ! कतिदिसिं पोग्गला चिजति ? . गोयमा ! णिव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघातं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं। [१५५३ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर के लिए कितनी दिशाओं से (आकर) पुद्गलों का चय होता
[उ.] गौतम ! निर्व्याघात की अपेक्षा से छह दिशाओं से, व्याघात की अपेक्षा से कदाचित् तीन दिशाओं से, कदाचित् चार दिशाओं से और कदाचित् पाँच दिशाओं से (पुद्गलों का चय होता है।)
१५५४. वेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! कतिदिसिं पोग्गला चिजंति ? गोयमा ! णियमा छद्दिसिं। [१५५४ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर के लिए कितनी दिशाओं से पुद्गलों का चय होता है ? [उ.] गौतम ! नियम से छह दिशाओं से (पुद्गलों का चय होता है ।) १५५५. एवं आहारगसरीस्स वि ।
[१५५५] इसी प्रकार (वैक्रियशरीर के समान) आहारकशरीर के पुद्गलों का चय भी नियम से छह दिशाओं से होता है ।
... १५५६. तेया-कम्मगाणं जहा ओरालियसरीरस्स (सु. १५५३)।
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(क) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र १३० (ख) पण्णवणासुत्तं (प्रस्तावनादि) भा. २, पृ. ११८