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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद |
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वैक्रियशरीर में प्रमाणद्वार
१५२७. वेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसयसहस्सं । [१५२७ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी है ?
[उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्टत: कुछ अधिक (सातिरेक) एक लाख योजन की कही गई है ।
१५२८. वाउक्काइयएगिंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेण अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । [१५२८ प्र.] भगवन् ! वायुकायिक-एकेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ?
[उ.] गौतम ! (वह) जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट भी अंगुल के असंख्यातवें भाग की (कही गई है।)
१५२९.[१] णेरइयपंचेंदियवेउव्वियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य ।
तत्थ णंजा सा भवधारणिजा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं पंचधणुसयाई। तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं धणुसहस्सं ।
[१५२९-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ?
[उ.] गौतम ! (वह) दो प्रकार की कही गई है, यथा- भवधारणीया और उत्तरवैकिया अवगाहना । उनमें से जो उनकी भवधारणीया-अवगाहना है, वह जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की है और उत्कृष्टतः पाँचसौ धनुष की है तथा उत्तरवैक्रिया-अवगाहना जघन्यतः अंगुल के संख्यातवें भाग की और उत्कृष्टत: एक हजार धनुष की है ।
[२] रयणप्पभापुढविणेरइयाणं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ?
गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता । तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य । तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सत्त धणूई तिण्णि रयणीओ छच्च अंगुलाई । तत्थ णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेजइभागं, उक्कोसेणं पण्णरस धूणूई अड्डाइजाओ रयणीओ।
[१५२९-२ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी कही गई है ?