SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 51
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३० ] [प्रज्ञापनासूत्र अणंतपएसोगाढे? गोयमा! सिय संखेजपएसोगाढे सिय असंखेजपदेसोगाढे, णो अणंतपदेसोगाढे। एवं जाव आयते। [७९५ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है? [७९५ उ.] गौतम! (असंख्यातप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान) कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, किन्तु अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता। इसी प्रकार (वृत्त से लेकर) आयत संस्थान तक (के विषय में कहना चाहिए।) ७९६. परिमंडले णं भंते! संठाणे अणंतपएसिए किं संखेजपएसोगाढे असंखेजपएसोगाढे अणंतपएसोगाढे ? गोयमा! सिय संखेजपएसोगाढे असंखेजपएसोगाढे, नो अणंतपएसोगाढे। एवं जाव आयते। - [७९६ प्र.] भगवन् ! अनन्तप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, अथवा अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ होता है? ' [७९३ उ.] गौतम! (अनन्तप्रदेशी परिमण्डलसंस्थान) कदाचित् संख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है और कदाचित् असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ होता है, (किन्तु) अनन्त प्रदेशों में अवगाढ़ नहीं होता। इसी प्रकार (वृत्तसंस्थान से लेकर) आयतसंस्थान तक (के विषय में समझना चाहिए।) ७९७. परिमंडले णं भंते! संठाणे संखेजपदेसिए संखेजपएसोगाढे किं चरिमे अचरिमे चरिमाइं अचरिमाइं चरिमंतपदेसा अचरिमंतपदेसा? गोयमा! परिमंडलेणंसंठाणे संखेजपदेसिए संखेजपदेसोगाढे नो चरिमे नो अचरिमे नो चरिमाइं नो अचरिमाइं नो चरिमंतपदेसा नो अचरिमंतपएसा, नियमा अचरिमंच चरिमाणि य चरिमंतपदेसा य अचरिमंतपदेसा य। एवं जाव आयते। [७९७ प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशी एवं संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान चरम है, अचरम है, (बहुवचनान्त) अनेक चरमरूप है, अनेक अचरमरूप है, चरमान्तप्रदेश है अथवा अचरमान्त प्रदेश है ? [७९७ उ.] गौतम् ! संख्यातप्रदेशी और संख्यातप्रदेशावगाढ़ परिमण्डलसंस्थान, न तो चरम है, न अचरम है, न (बहुवचनान्त) चरम है, न (बहुवचनान्त) अचरम है, न चरमान्तप्रदेश है और न ही अचरमान्तप्रदेश है, किन्तु नियम से अचरम, (बहुवचनान्त) अनेक चरमरूप, चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश है।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy