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________________ ४७६ ] औदारिकशरीर की असंख्यातवाँ भाग तीन गव्यूति' समुच्चय औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना - कुछ अधिक एक हजार योजन की कही गई है, वह समुद्र गोतीर्थ आदि में पद्मनाल आदि की अपेक्षा से समझना चाहिए । यहाँ के सिवाय अन्यत्र इतनी अवगाहना वाला औदारिकशरीर सम्भव नहीं है । [ प्रज्ञापनासूत्र नौ-नौ सूत्रो का समूह - पृथ्वीकायिकदि एकेन्द्रियों के प्रत्येक के नौ-नौ सूत्र इस प्रकार है(१-३) औघिकसूत्र, औधिक अपर्यापतसूत्र, औधिक पर्याप्तसूत्र; (४-६) सूक्ष्मसूत्र, सूक्ष्म- अपर्याप्तकसूत्र और सूक्ष्म-पर्याप्तकसूत्र ; तथा (७-९) बादरसूत्र, बादर - अपर्यापतकसूत्र और बादर - पर्याप्तकसूत्र ; ये तीनों के त्रिक मिला कर पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिकों तक के ९ - ९ सूत्र हुए । इसी तरह द्वि-त्रि- चतुरिन्द्रियों के औषिकसूत्र, पर्याप्तसूत्र और अपर्यापतसूत्र ; यों तीन-तीन सूत्र होते हैं । जलचरों के औधिक, उसके पर्याप्तक और अपर्याप्तक ये तीन सूत्र, गर्भज, उसके पर्याप्तक और पर्याप्तक ये तीन सूत्र, इस प्रकार तीनों त्रिक मिला कर जलचरों के ९ सूत्र होते हैं । इसी प्रकार स्थलचर चतुष्पद, उरः परिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के प्रत्येक के औधिकत्रिक, गर्भजत्रिक एवं सम्मूच्छिमत्रिक के हिसाब से ९ - ९ सूत्र होते. है । मनूष्यों के औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना - तीन गव्यूति ( ६ कोस) की कही गई हैं, वह देवकुरू आदि के मनुष्यों की अपेक्षा से इतनी उत्कृष्ट अवगाहना समझनी चाहिए । वैक्रियशरीर में विधिद्वार १५१४. वेडव्वियसरीरे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोमा ! दुविहे पण्णत्ते । तं जहा- एगिंदियवेडव्वियसरीरें य पंचेंदियवेडव्वियसरीरे य । [१५१४ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर कितने प्रकार का कहा गया है ? (उ.) गौतम ! ( वह) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार - एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीर और पंचेन्द्रिय- वैक्रियशरीर । १५१५. [ १ ] जदि एगिंदियवेडव्वियसरीरे किं वाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरे अवाउक्का १. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण) भाग-१, पृ. ३३३ से ३३५ तक २. प्रज्ञापना., मलयवृत्ति, पत्र ४१३ ३. प्रज्ञापतना., मलयवृत्ति, पत्र ४१३- ४१४ वही, मलयवृत्ति, पत्र ४१४ ४.
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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