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________________ ४७४ ] [प्रज्ञापनासूत्र ३. पृथ्वीकायिकों, पर्याप्तक-अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की अंगुल का असंख्यातवाँ भाग पृथ्वीकायिकों के सूक्ष्म, बादर के औदारिक शरीर की ४. अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकयिकों के. औदारिकशरीर की ५. वनस्पतिकायिकों के औदारिकशरीर की कुछ अधिक एक हजार योजन वनस्पति अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की " अंगुल का असंख्यातवाँ भाग वनस्पति पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की कुछ अधिक एक हजार योजन वनस्पति बादर, पर्याप्तकों के औ.श. की अंगुल का कुछ अधिक एक हजार योजन वनस्पति बादर अपर्याप्तकों के औ.श. की असंख्यातवाँ भाग अंगुल का असंख्यातवाँ भाग वनस्पति सूक्ष्म, पर्याप्तक, अपर्याप्तकों के औदारिकशरीर की द्वीन्द्रियों के औदारिकशरीर की बारह योजन द्वीन्द्रियों के पर्याप्तकों के औ. शरीर की द्वीन्द्रियों के अपर्याप्तकों के औ. शरीर की अंगुल का असंख्यातवाँ भाग ७. त्रीन्द्रियों के अपर्याप्तकों के औ. शरीर की त्रीन्द्रियों के औघिक एवं पर्याप्तकों के औ. शरीर की तीन गव्यूति (६ कोस) ८. चतुरिन्द्रियों के औधिक एवं पर्याप्तकों के औदारिकशरीर की चार गव्यूति (८ कोस) पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के औदारिकशरीर की एक हजार योजन ३. औधिक पर्याप्त अपर्याप्त के औ. श. की अपर्याप्त का अंगुल का अ.भाग ३. सम्मूछिम पर्याप्त अपर्याप्त के औ. श. की " एक हजार योजन, अप.की
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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