SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 489
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ ] [प्रज्ञापनासूत्र (६) हुण्डकसंस्थान-जिस शरीर के सभी अंगोपांग बेडौल हों, प्रमाण और लक्षण से हीन हों, वह हुण्डकसंस्थान कहलाता है । औधिक तिर्यचयोनिकों के नौ आलापक- ये नौ आलापक इस प्रकार है- समुच्चय पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का एक इनके पर्याप्तकों का एक और अपर्याप्तकों का एक, यों तीन आलापक ; सम्मूछिमपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक का एक, इनके पर्याप्तक-अपर्याप्तकों के दो, यों कुल तीन आलापक तथा गर्भजपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक का एक, उनके पर्याप्तक अपर्याप्तक का एक-एक, यों कुल तीन आलापक । ये सब मिलाकर ९ आलापक हुए । स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के औदारिकशरीर-सम्बन्धी नौ सूत्र- समुच्चय स्थलचरों का, उनके पर्याप्तकों का, अपर्याप्तकों का ; सम्मूछिम स्थलचरों का, उनके पर्याप्तकों का, अपर्याप्तकों का तथा गर्भज स्थलचरों का, उनके पर्याप्तकों का एवं अपर्याप्तकों का एक-एक सूत्र होने से कुल नौ सूत्र होते हैं । औदारिकशरीर में प्रमाणद्वार १५०२ औरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । [१५०२ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ? [उ.] गौतम ! (औदारिकशरीरावगाहना) जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की (और) उत्कृष्टः कुछ अधिक हजार योजन की है। १५०३. एग्रिदियओरालियस्स वि एवं चेव जहा ओहियस्स (सु. १५०२)। [१५०३] एकेन्द्रिय के औदारिकशरीर की अवगाहना भी जैसी (सू. १५०२ में) औधिक (सामान्य औदारिकशरीर) की (कही है उसी प्रकार समझनी चाहिए ।) १५०४. [१] पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । [१५०४-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (उसकी अवगाहना) जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है । १. प्रज्ञापना, मलयवृत्ति, पत्र ४१२ २. (क) वही, मलयवृत्ति, पत्र ४१२ (ख) प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनीटीका भा. ४, पृ. ६३२ ३. (क) वही, मलयवृत्ति, पत्र ४१२ (ख) प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनीटीका भा. पृ. ६३३
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy