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[प्रज्ञापनासूत्र (६) हुण्डकसंस्थान-जिस शरीर के सभी अंगोपांग बेडौल हों, प्रमाण और लक्षण से हीन हों, वह हुण्डकसंस्थान कहलाता है ।
औधिक तिर्यचयोनिकों के नौ आलापक- ये नौ आलापक इस प्रकार है- समुच्चय पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों का एक इनके पर्याप्तकों का एक और अपर्याप्तकों का एक, यों तीन आलापक ; सम्मूछिमपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक का एक, इनके पर्याप्तक-अपर्याप्तकों के दो, यों कुल तीन आलापक तथा गर्भजपंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिक का एक, उनके पर्याप्तक अपर्याप्तक का एक-एक, यों कुल तीन आलापक । ये सब मिलाकर ९ आलापक हुए ।
स्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के औदारिकशरीर-सम्बन्धी नौ सूत्र- समुच्चय स्थलचरों का, उनके पर्याप्तकों का, अपर्याप्तकों का ; सम्मूछिम स्थलचरों का, उनके पर्याप्तकों का, अपर्याप्तकों का तथा गर्भज स्थलचरों का, उनके पर्याप्तकों का एवं अपर्याप्तकों का एक-एक सूत्र होने से कुल नौ सूत्र होते हैं । औदारिकशरीर में प्रमाणद्वार
१५०२ औरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं सातिरेगं जोयणसहस्सं । [१५०२ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी कही गई है ?
[उ.] गौतम ! (औदारिकशरीरावगाहना) जघन्यतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की (और) उत्कृष्टः कुछ अधिक हजार योजन की है।
१५०३. एग्रिदियओरालियस्स वि एवं चेव जहा ओहियस्स (सु. १५०२)।
[१५०३] एकेन्द्रिय के औदारिकशरीर की अवगाहना भी जैसी (सू. १५०२ में) औधिक (सामान्य औदारिकशरीर) की (कही है उसी प्रकार समझनी चाहिए ।)
१५०४. [१] पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंगुलस्स असंखेज्जइभागं । [१५०४-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर की अवगाहना कितनी हैं ? [उ.] गौतम ! (उसकी अवगाहना) जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग की है ।
१. प्रज्ञापना, मलयवृत्ति, पत्र ४१२ २. (क) वही, मलयवृत्ति, पत्र ४१२ (ख) प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनीटीका भा. ४, पृ. ६३२ ३. (क) वही, मलयवृत्ति, पत्र ४१२ (ख) प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनीटीका भा. पृ. ६३३