________________
[ प्रज्ञापनासूत्र
[१५०१ - ३] गर्भज (मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) भी इसी प्रकार (छहों संस्थान ( वाले होते हैं।) पर्याप्तक-अपर्याप्तक (गर्भज मनुष्यों) के ( औदारिकशरीर भी छह संस्थान वाले समझने चाहिए ।)
४६६ ]
[४] सम्मुच्छिमाणं पुच्छा ।
गोयमा ! हुंडठाणसंठिया पण्णत्ता ।
[१५०१-४] सम्मूच्छिम मनुष्यों (चाहे पर्याप्तक हो, या अपर्याप्तक) के ( औदारिकशरीर किस संस्थान वाले होते हैं ?
[उ.] गोयमा ! (सम्मूच्छिम मनुष्यों के औदारिकशरीर) हुण्डकसंस्थान वाले होते हैं ।
विवेचन - सर्वविध औदारिकशरीरों की संस्थानसम्बन्धी प्ररूपणा - प्रस्तुत १४ सूत्रों (सू. १४८८ से १५०१) में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय-मनुष्य तक के विविध औदारिकशरीरों के संस्थानों की प्ररूपणा की गई है । संस्थानों की प्ररूपणा का क्रम औदारिकशरीर के भेदों के क्रम के अनुसार रखा गया है।
औदारिकशरीरों की संस्थान-सम्बन्धी तालिका - इस प्रकार है
औदारिकशरीर
क्रम
१. पृथ्वीकायिक सूक्ष्म - बादर, पर्याप्त अपर्याप्त औदारिकशरीर
२. अप्कायिक सूक्ष्म - बादर, पर्याप्त - अपर्याप्त औदारिकशरीर
३.
स्कायिक सूक्ष्म - बादर, पर्याप्त - अपर्याप्त औदारिकशरीर
४. वायुकायिक सूक्ष्म - बादर, पर्याप्त - अपर्याप्त औदारिकशरीर ५. वनस्पतिकायिक सूक्ष्म- बादर, पर्याप्त अपर्याप्त औदारिकशरीर द्वि-त्रि- चतुरिन्द्रिय पर्याप्त - अपर्याप्त औदारिकशरीर
६.
७. तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय औदारिकशरीर
८. सम्मूच्छिम ति. पं. औदारिकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त
९. गर्भज ति. पं. औदारिकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त
१०. जलचरति. पं. औदारिकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त
११. सम्मूच्छिम जलचर ति. पं. औदारिकशरीर पर्याप्त अपर्याप्त
१. पण्णवणासुत्तं (प्रस्तावना परिशिष्टादि) भा. २, पृ. ११७
संस्थान
मसूर की दाल के समान
स्थिर जलबिन्दु के समान.
सूइयों के ढेर के समान पताका के आकार के समान
नाना प्रकार के संस्थान वाला
हुंडकसंस्थान वाले
छहों प्रकार के संस्थान वाला
हुंडकसंस्थान वाला
षड्विध संस्थान वाला
षड्विध संस्थान वाला
हुंडकसंस्थान