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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद]
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स्थलचर शरीर के मुख्य दो भेद-उर:परिसर्प और भुजपरिसर्प । उर:परिसर्प और भुजपरिसर्प, इन दोनों के शरीर के सम्मूछिम और गर्भज तथा उनके पर्याप्तक और अपर्याप्तक प्रभेद होते हैं । खेचर शरीर के भी सम्मुछिम, गर्भज तथा उनके पर्याप्त, अपर्याप्त भेद । मनुष्य शरीर के मुख्य दो भेद-सम्मूछिम और गर्भज । फिर गर्भज मनुष्य शरीर के दो भेद-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । इस प्रकार औदारिकशरीर के कुल ५० भेदप्रभेदों की गणना कर लेनी चाहिए ।' औदारिकशरीर में संस्थानद्वार
१४८८. ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते । [१४८८ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर का संस्थान किस प्रकार का कहा गया है ? [उ.] गोयमा ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है । .
१४८९. एगिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठिए पण्णत्ते ? • गोयमा ! णाणासंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१४८९ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान (आकार) का कहा गया है ? [उ.] गोयमा ! (वह) नाना संस्थान वाला कहा गया है ? १४९०.[१] पुढविक्काइयएगिंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! मसूरचंदसंठाणसंठिए पण्णत्ते ।
[१४९० प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! (वह) मसूर-चन्द्र (मसूर की दाल) जैसे संस्थान वाला कहा गया है। [२] एवं सुहुमपुढविक्काइयाण वि।
[१४९०-२] इसी प्रकार सूक्ष्मपृथ्वीकायिकों का (औदारिकशरीर-संस्थान) भी (मसूर की दाल के समान है।)
[३] बायराण वि एवं चेव। [१४९०-३] बादरपृथ्वीकायिकों का (औदारिकशरीर-संस्थान) भी इसी के समान (समझना चाहिए।)
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प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्र ४१०
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