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________________ बीसवाँ अन्तक्रियापद] [ ४१९ [उ.] गौतम ! (वे एक समय में) जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार (अन्तक्रिया करते हैं।) [२] एवं आउक्काइया वि चत्तरि । वणस्सइकाइया छ । पंचेंदियतिरिक्खजोणिया दस । तिरिक्खजोणिणीओ दस । मणूसा दस । मणूसीओ वीसं । वाणमंतरा दस । वाणमंतरीओ पंच। जोइसिया वींस । वेमाणिया अट्ठसतं । वेमाणिणीओ वीसं । दारं ३ ॥ [१४१६-२] इसी प्रकार (अप्कायिक आदि जघन्य तो एक समय में एक दो या तीन और उत्कृष्टतः) अप्कायिक भी चार (अन्तक्रिया करते हैं ;) वनस्पतिकायिक छह, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च दस, (पंचेन्द्रिय) तिर्यञ्च स्त्रियाँ दस, मनुष्य दस, मनुष्यनियाँ बीस, वाणव्यन्तर देव दस, वाणव्यन्तर देवियाँ पांच, ज्योतिष्क देव दस, ज्योतिष्क देवियाँ बीस, वैमानिक देव एक सौ आठ, वैमानिक देवियाँ वीस (अन्तक्रिया करती हैं ।) विवेचन - प्रस्तुत द्वार में केवल अनन्तरागत अन्तक्रिया कर सकने वाले जीवों के सम्बन्ध में प्रश्र है कि वे एक समय में कितनी संख्या में अन्तक्रिया करते हैं ? अनन्तरागत अन्तक्रिया कर सकने वाले जीवों की संख्या-सूचक तालिका. इस प्रकार है - अनन्तरागत जीव जघन्य संख्या उत्कृष्ट संख्या नारक (समुच्चय) १,२,३, प्रथम, द्वितीय, तृतीय नारक १,२,३ चतुर्थ पृथ्वी के नारक १,२,३ समस्त भवनपति देव १,२,३ समस्तं भवनपति देवियाँ १,२,३ पृथ्वीकाय, अप्काय १,२,३ वनस्पतिकायिक १,२,३ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च १,२,३ पंचेन्द्रिय तिर्यञ्ची (स्त्री) १,२,३ मनुष्य (नर) १,२,३ मनुष्य (नारी) १,२,३ वाणव्यन्तर देव १,२,३ वाणव्यन्तर देवियाँ १,२,३
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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