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________________ ३३०] [प्रज्ञापनासूत्र प्रिय, अधिक मनोज्ञ और) अधिक मनाम वर्ण वाली होती है। १२३०. पम्हलेस्सा णं भंते ! केरिसिया वण्णेणं पणात्ता ? गोयमा ! से जहाणामए चंपे इ वा चंपयछल्ली इ वा चंपयभेदे इ वा हलिहा इ वा हलिद्दगुलिया इ वा हलिहाभेए इ वा हरियाले इ वा हरियालगुलिया इ वा हरियालभेए इ वा चिउरे इ वा चिउररागे इ वा सुवण्णसिप्पी इ वा वरकणगणिहसे इ वा वरपुरिसवसणे इ वा अल्लइकुसुमे इ वा चंपयकुसुमे इ वा कणियारकुसुमे इ वा कुहंडियाकुसुमे इ वा. सुवण्णजूहिया इ वा सुहिरणियाकुसुमे इ वा कोरेंटमल्लपदामे इ वा पीयासोगे इ वा पीयकणवीरए इ वा पीयबंधुजीवए इ वा । भवेतारूवा? गोयमा ! णोक इणढे समढे, पम्हलेस्सा णं एत्तो इट्टतरिया चेव जाव मणामतरिया चेव वण्णेणं पण्णत्ता । [१२३० प्र.] भगवन् ! पद्मलेश्या वर्ण से कैसी है ? [१२३० उ.] जैसे कोई चम्पा हो, चम्पक की छाल हो, चम्पक का टुकड़ा हो, हल्दी हो, हल्दी की गुटिका (गोली) हो, हरताल हो, हरताल की गुटिका (गोली) हो, हरताल का टुकड़ा हो, चिकुर नामक पीत वस्तु हो, चिकुर का रंग हो, या स्वर्ण की शक्ति हो, उत्तम स्वर्ण-निकष (कसौटी पर खींची हुई स्वर्णरेखा) हो, श्रेष्ठ पुरुष (वासुदेव) का पीताम्बर हो, अल्लकी का फूल हो, चम्पा का फूल हो, कनेर का फूल हो, कूष्माण्ड (कोले) की लता का पुष्प हो, स्वर्णयूथिका (जूही) का फूल हो, सुहिरण्यिका-कुसुम हो, कोरंट के फूलों की माला हो, पीत अशोक हो, पीला कनेर हो, अथवा पीला बन्धुजीवक हो, (इनके समान पद्मलेश्या पीले वर्ण की कही गई है।) [प्र.] भगवन् ! क्या पद्मलेश्या (वास्तव में ही) ऐसे रूप वाली होती है ? [उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। पद्मलेश्या वर्ण में इनसे भी इष्टतर, यावत् अधिक मनाम (वांछनीय) होती है। १२३१. सुक्कलेस्सा णं भंते ! केरिसया वण्णेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहाणामए अंके इ वा संखे इ वा चंदे इ वा कुंदे इ वा दगे इ वा दगरए इ वा दही इ वा दहिघणे इ वा खीरे इ वा खीरपूरे इ वा सुक्कछिवाडिया इ वा पेहुणमिंजिया इ वा धंतधोयरूप्पपट्टे इ वा सारइयबलाहए इ वा कुमुददले इ वा पोंडरियदले इ वा सालिपिट्ठरासी इ वा कुडगपुप्फरासी ति वा सिंदुवारवरमल्लदामे इ वा सेयासोए इ वा सेयकणवीरे इ वा सेयबंधुजीवए इ वा । भवेतारूया ? गोयमा ! णो इणटे समटे, सुक्कलेंस्सा णं एत्तो इद्रुतरिया चेव कंततरिया चेव पियतरिया चेव
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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