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________________ दसवाँ चरमपद] [१३ अपेक्षा अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं। उनसे लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि अचरम क्षेत्र बहुत अधिक है, इस कारण उसके प्रदेश भी बहुत अधिक हैं। उनकी अपेक्षा अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वह क्षेत्र अनन्तगुणा है। उनकी अपेक्षा भी लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं क्योंकि अलोक के अचरमान्तप्रदेशों में लोक के चरमान्तप्रदेशों को, अचरमान्तप्रदेशों को तथा अलोक के चरमान्तप्रदेशों को मिला देने पर भी वे सब असंख्यात ही होते हैं और असंख्यात, अनन्त राशि की अपेक्षा कम ही है, अतएव उन्हें उनमें सम्मिलित कर देने पर भी वे अलोक के अचरमान्तप्रदेशों से विशेषाधिक ही होते हैं। द्रव्य और प्रदेशों की दृष्टि से अल्पबहुत्व का पूर्वोक्त युक्ति से स्वयं विचार कर लेना चाहिए। लोक के चरमखण्डों की अपेक्षा से अलोक के चरमखण्ड विशेषाधिक हैं और उनकी अपेक्षा लोक और अलोक का अचरम और उनके चरमखण्ड दोनों मिलकर विशेषाधिक हैं । इसका कारण पूर्ववत् है। उनकी अपेक्षा लोक के चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं, उनसे अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं। उनकी अपेक्षा लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणे हैं। उनकी अपेक्षा अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणे हैं । युक्ति पूर्ववत् है। उनकी अपेक्षा लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों मिलकर विशेषाधिक हैं। लोक अलोक के चरम और अचरमप्रदेशों की अपेक्षा सब द्रव्य मिलकर विशेषाधिक है, क्योंकि अनन्तानन्तसंख्यक जीवों, परमाणु आदि, तथा अनन्त परमाण्वात्मक स्कन्ध पर्यन्त सब पृथक् पृथक् भी (प्रत्येक) अनन्त-अनन्त हैं और वे सभी द्रव्य हैं । समस्त द्रव्यों को अपेक्षा सब प्रदेश अनन्तगुणे हैं और सब प्रदेशों की अपेक्षा सर्व पर्याय अनन्तगुणे हैं,क्योंकि प्रदेश के स्वपरपर्याय अनन्त हैं। यह सब स्पष्ट है। परमाणुपुद्गलादि की चरमाचरमादि वक्तव्यता ७८१. परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं चरिमे १ अचरिमे २ अवत्तव्वए ३? चरिमाइं ४ अचरिमाइं ५ अवत्तव्वयाई ६? उदाहु चरिमे य अचरिमे य ७ उदाहु चरिमे य अचरिमाइं च ८ उदाहु चरिमाइंच अचरिमे य ९ उदाहु चरिमाइं च अचरिमाइं च १०? पढमा चउभंगी। उदाहु चरिमे च अवत्तव्वए य ११ उदाहु चरिमे य अवत्तव्वयाइं च १२ उदाहु चरिमाइं च अवत्तव्वए य १३ उदाहु चरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १.४? बीया चउभंगी। उदाहु अचरिमे य अवत्तव्वए य १५ उदाहु अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च १६ उदाहु अचरिमाइंच अवत्तव्वए य १७ उदाहु अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च १८? तइया चउभंगी। उदाहु चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वए य १९ उदाहु चरिमे य अचरिमे य अवत्तव्वयाइं च २० उदाहु चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वए य २१ उदाहु चरिमे य अचरिमाइं च अवत्तव्वयाइं च २२ १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक २३२
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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