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[प्रज्ञापनासूत्र
__गोयमा ! दो इंदिया पण्णत्ता । तं जहा - जिब्भिंदिए य फासिदिए य । दोण्हं पि इंदियाणं संठाणं बाहल्लं पोहत्तं पदेसा ओगाहणा य जहा ओहियाणं भणिया (सु. ९७४-९७८) तहा भाणियव्वा। णवरं फासेंदिए हुंडसंठाणसंठिए पण्णत्ते त्ति इमो विसेसो।
[९८७-१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों के कितनी इन्द्रियाँ कही गई हैं ? .
[९८७-१ उ.] गौतम ! दो इन्द्रियाँ कही गई हैं, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय। दोनों इन्द्रियों के संस्थान, बाहल्य, पृथुत्व, प्रदेश और अवगाहना के विषय में जैसे (सू. ९७४ से ९७८ तक में) समुच्चय के संस्थानादि के विषय में कहा है, वैसा कहना चाहिए। विशेषता यह है कि (इनकी) स्पर्शनेन्द्रिय हुण्डकसंस्थान वाली होती है।
[२] एतेसि णं भंते ! बेइंदियाणं जिब्भिंदिय - फासेंदियाणं ओगाहणट्ठयाए पएसट्ठयाए ओगाहणपएसट्टयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा ४ ?
गोयमा ! सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिंदिए ओगाहणट्ठयाए, फासेंदिए ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणेः पएसट्ठयाए - सव्वत्थोवे बेइंदियाणं जिब्भिंदिए पएसट्टयाए, फासेंदिए पएसट्टयाए संखेजगुणेः ओगाहणपएसट्ठयाए - सव्वत्थोवे बेइंदियस्स जिब्भिंदिए ओगाहणट्ठयाए, फासिंदिए
ओगाहणट्ठयाए संखेजगुणें, फासेंदियस्स ओगाहणट्ठयाएहितो जिब्भिंदिए पएसट्ठयाए अणंतगुणे, फासिंदिए पएसट्ठयाए संखेजगुणे।
[९८७-२ प्र.] भगवन् ! इन द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय में से अपगाहना की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से तथा अवगाहना और प्रदेशों (दोनों) की अपेक्षा से कौन, किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?
[९८७-२ उ.] गौतम ! अवगाहना की अपेक्षा से - द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय सबसे कम है, (उससे) अवगाहना की दृष्टि से संख्यातगुणी (उनकी) स्पर्शनेन्द्रिय है। प्रदेशों की अपेक्षा से - सबसे कम द्वीन्द्रिय की जिह्वेन्द्रिय है, (उसकी अपेक्षा) प्रदेशों की अपेक्षा से उनकी स्पर्शनेन्द्रिय है। अवगाहना और प्रदेशों की अपेक्षा से - द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से सबसे कम है, (उससे उनकी) स्पर्शनेन्द्रिय अवगाहना की अपेक्षा से संख्यातगुणी अधिक है, स्पर्शनेन्द्रिय की अवगाहनार्थता से जिह्वेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से अनन्तगुणी है। (उसकी अपेक्षा) स्पर्शनेन्द्रिय प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणी है ।
[३] बेइंदियाणं भंते ! जिब्भिंदियस्स केवइया कक्खडगरुयगुणा पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता । एवं फासेंदियस्स वि। एवं मउयलहुयगुणा वि । [९८७-३ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रियों की जिह्वेन्द्रिय के कितने कर्कश-गुरुगुण कहे गए हैं ? [९८७-३ उ.] गौतम ! इनकी जिह्वेन्द्रिय के कर्कश-गुरुगुण अनन्त हैं। इसी प्रकार इनकी स्पर्शनेन्द्रिय