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ग्यारहवाँ भाषापद]
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[८७७-४ उ.] गौतम ! (वह) न तो एकप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् न संख्यातप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है, (किन्तु) असंख्यातप्रदेशावगाढ़ द्रव्यों को ग्रहण करता है।
[५] जाइं कालओ गेण्हति ताई किं एगसमयट्ठिताइं गेण्हति दुसमयठितीयाइं गेण्हति जाव असंखेजसमयठितीयाइं गेण्हति ?
गोयमा ! एगसमयठितीयाइं पिगेण्हति, दुसमयठितीयाइं पिगेण्हति, जाव असंखेजसमयठितीयाई पि गेण्हति?
[८७७-५ प्र.] (जीव) जिन (स्थित द्रव्यों) को कालत: ग्रहण करता है, क्या (वह) एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-५ उ.] गौतम ! (वह) एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, दो समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् असंख्यात समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता
(६) जाइं भावओ गेण्हति ताई किं वण्णमंताई गेण्हति गंधमंताई गेण्हति रसमंताई गेण्हति फासमंताई गेण्हति ?
गोयमा ! वण्णमंताई पि गेण्हति जाव फासमंताई पि गेण्हति।
[८७७-६ प्र.] (जीव) जिन (स्थित द्रव्यों) को भावत: ग्रहण करता है, क्या वह वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, गन्ध वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, रस वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है अथवा स्पर्श वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है?
[७] जाइं भावओ वण्णमंताई गेण्हति ताई किं एगवण्णाइं गेण्हति जाव पंचवण्णाइं गेण्हति?
गोयमा ! गहणदव्वाइं पडुच्च एगवण्णाई पि गेण्हति जाव पंचवण्णाइं पि गेण्हति, सव्वग्गहणं पडुच्च णियमा पंचवण्णाइं गेण्हति, तं जहा - कालाइं नीलाइं लोहियाइं हालिद्दाइं सुक्किलाइं।
[८७७-७ प्र.] भावत: जिन वर्णवान् (स्थित) द्रव्यों को (जीव) ग्रहण करता है क्या (वह) एक वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है, यावत् पांच वर्ण वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ?
[८७७-७] गौतम ! ग्रहण (ग्राह्य) द्रव्यों की अपेक्षा से (वह) एक वर्ण वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है, यावत् पांच वर्ण वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है। (किन्तु) सर्वग्रहण की अपेक्षा से (वह) नियमत: पांच वर्णो वाले द्रव्यों को ग्रहण करता है। जैसे कि - काले, नीले, लाल, पीले और शुक्ल (सफेद)।
[८] जाइं वण्णओ कालाइं गेण्हति ताई किं एगगुणकालाइं गेण्हति जाव अणंतगुणकालाई