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________________ १४० दश प्रकार के भवनवासी देव १४१ आठ प्रकार के वाणव्यन्तर देव १४२. पांच प्रकार के ज्योतिष्क देव १४३-१४७ वैमानिक देव : दो प्रकार (देवों के विविध स्वरूप : भवन-आवास आदि) द्वितीय स्थानपद प्राथमिक १४८-१५० पृथ्वीकायिकों के स्थान का निरूपण आठ पृथ्वी–रत्नप्रभा आदि का वर्णन पृथ्वीकायिकों का तीनों लोकों में निवासस्थान कहाँ कहाँ ? १५१-१५३ अप्कायिकों के स्थान का निरूपण सात घनोदधि आदि का वर्णन १५४-१५६ तेजस्कायिकों के स्थान का निरूपण दो ऊर्ध्वकपाट : विवेचन १५७-१५९ वायुकायिकों के स्थान का निरूपण १६०-१६२ वनस्पतिकायिकों के स्थानों का निरूपण १६३ द्वीन्द्रिय जीवों के स्थानों का निरूपण १६४-१६५ त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय जीवों के स्थानों का निरूपण १६६ पंचेन्द्रिय जीवों के स्थान की पृच्छा १६७-१७४ नैरयिकों के स्थानों की प्ररूपणा (रत्नप्रभा आदि सात पृथ्वियों का स्थान, वर्ण, गंध, मोटाई, संख्या आदि का निरूपण) १७५ पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों के स्थान की प्ररूपणा १७६ मनुष्यों के स्थानों की प्ररूपणा . १७७ सर्व भवनवासी देवों के स्थानों की प्ररूपणा १७८-१८० असुरकुमार आदि के भवनावास तथा अन्य वर्णन चमरेन्द्र व बलीन्द्र का वर्णन दाक्षिणात्य असुरकुमारों (चमरेन्द्र) का वर्णन उत्तरदिशावासी असुरकुमार बलीन्द्र - वैरोचनेन्द्र का वर्णन १८१-१८३ नागकुमारों का वर्णन दाक्षिणात्य तथा उत्तरदिशावासी नागकुमारों का वर्णन १८४-१८७ सुपर्णकुमार देवों के स्थान आदि का वर्णन १३७ १३९ १४१ १४१ १४३ १४४ १५५ १५५ १५६ १५९ १६६ १६६ १६८ [१३]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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