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भी प्राप्त होता है। यह टबा संवत १७६४ में रचित हैं । परमानन्दकृत स्तवक अर्थात् बालावबोध प्राप्त है, जो संवत १८७६ की रचना है । यह टबा रायधनपतसिंह बहादुर की प्रज्ञापना की आवृत्ति में प्रकाशित है। श्री नानकचंदकृत संस्कृतछाया भी प्राप्त है, जो रायधनपतसिंह बहादुर ने प्रकाशित की है (प्रज्ञापना के साथ)। पण्डित भगवानदास हरकचन्द ने प्रज्ञापवनासूत्र का अनुवाद भी तैयार किया था, जो विक्रम संवत् १९९१ में प्रकाशित हुआ । आचार्य अमोलक ऋषि जी महाराज ने भी हिन्दी अनुवाद सहित प्रज्ञापना का एक संस्करण प्रकाशित किया था । इस प्रकार समय-समय पर प्रज्ञापना पर विविध व्याख्या साहित्य लिखा गया है ।
सर्वप्रथम सन् १८८४ में मलयगिरिविहित विवरण, रामचन्द्रकृत संस्कृतछाया व परमानन्दर्षिकृत स्तवक के साथ प्रज्ञापना का धनपतसिंह ने बनारस से संस्करण प्रकाशित किया। उसके पश्चात् सन् १९१८-१९१९ में आगमोदय समिति बम्बई ने मलयगिरि टीका के साथ प्रज्ञापना का संस्करण प्रकाशित किया। विक्रम संवत् १९९१ में भगवानदास हर्षचन्द्र जैन सोसायटी अहमदाबाद से मलयगिरि टीका के अनुवाद के साथ प्रज्ञापना का संस्करण निकला। सन् १९४७ - १९४९ में ऋषभदेवजी केसरीमलजी श्वेताम्बर संस्था रतलाम, जैन पुस्तक प्रचार संस्था, सूरत से हरिभद्रविहित प्रदेशव्याख्या सहित प्रज्ञापना का संस्करण निकला। सन् १९७१ में श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई से पण्णवणासुत्तं मूल पाठ और विस्तृत प्रस्तावना के साथ, पुण्यविजयजी महाराज द्वारा सम्पादित प्रकाशित हुआ है। विक्रम सम्वत् १९७५ में श्री अमोलक ऋषिजी महाराज कृत हिन्दी अनुवाद सहित हैदराबाद से एक प्रकाशन निकला है । वि. सम्वत् २०११ में सूत्रागमसमिति गुडगांव छावनी से श्री पुप्फभिक्खु द्वारा सम्पादित प्रज्ञापना का मूल पाठ प्रकाशित हुआ है। इस तरह समय-समय पर आज तक प्रज्ञापना के विविध संस्करण निकले हैं ।
प्रस्तुत संस्करण
प्रज्ञापना के अनेक संस्करण प्रकाशित होने पर भी एक ऐसे संस्करण की आवश्यकता थी जिसमें शुद्ध मूल पाठ हो, अर्थ हो और मुख्य स्थलों पर विवेचन भी हो, जिससे विषय सहज रूप से समझा जा सके। इस दृष्टि से प्रस्तुत आगम का प्रकाशन हो रहा है। श्रमणसंघ के युवाचार्य महामहिम मधुकर मुनिजी महाराज ने आगमों के अभिनव संस्करण निकालने की योजना बनाई । यह योजना युवाचार्य श्री की दूरदर्शिता, दृढ़संकल्प, शक्ति और आगमसाहित्य के प्रति अगाध भक्ति का पावन प्रतीक है । युवाचार्य श्री के प्रबल पुरुषार्थ के फलस्वरूप ही स्वल्पकाल में अनेक आगम प्रकाशित हो चुके हैं और अनेक आगम शीघ्र प्रकाशित होने वाले हैं। अनेक मनीषियों के सहयोग के कारण यह गुरुतर कार्य सहज और सुगम हो गया है।
प्रस्तुत प्रज्ञापना के संस्करण की अपनी विशेषता है । इसमें शुद्ध मूलपाठ, भावार्थ और विवेचन है। विवेचन न बहुत अधिक लम्बा है और न बहुत संक्षिप्त ही । विषय को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन टीकाओं का भी उपयोग किया है । विषय बहुत ही गम्भीर होने पर भी विवेचनकार ने उसे सहज, सरल और सरस बनाने का भरसक प्रयास किया है । यह कहा जाय कि विवेचन में गागर में सागर भर दिया गया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगा ।
प्रज्ञापना जैन-तत्त्व - ज्ञान का वूहत् कोष है । इसमें जैनसिद्धान्त के अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों का संकलन है । उपांगों में यह सबसे अधिक विशाल है । अंगों में जो स्थान व्याख्याप्रज्ञप्ति का है वही स्थान उपांगों में
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