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________________ इतना ही है कि उस उपयोग में सामान्य धर्म प्रतिबिम्बित होता है और ज्ञानोपयोग में विशेष धर्म झलकता है। वस्तु में दोनों धर्म हैं पर उपयोग किसी एक धर्म को मुख्य रूप से ग्रहण कर पाता है। उपयोग में सामान्य और विशेष का भेद होता है किन्तु वस्तु में नहीं । काल की दृष्टि से दर्शन और ज्ञान का क्या सम्बन्ध है ? इस प्रश्न पर भी चिन्तन करना आवश्यक 1 छद्मस्थों के लिए सभी आचार्यों का एक मत है कि छद्मस्थों को दर्शन और ज्ञान क्रमशः होता है, युगपत नहीं । केवली में दर्शन और ज्ञान का उपभोग किस प्रकार होता है । इस सम्बन्ध में आचार्यों के तीन मत हैं। प्रथम मत ज्ञान और दर्शन क्रमशः होते हैं । द्वितीय मान्यता - दर्शन और ज्ञान युगपत होते हैं। तृतीय मान्यता ज्ञान और दर्शन में अभेद है अर्थात् दोनों एक हैं । - — आवश्यकनिर्युक्ति, १९४ विशेषावश्यकभाष्य १९५ आदि में कहा गया है कि केवली के भी दो उपयोग एक साथ नहीं हो सकते । श्वेताम्बर परम्परा के आगम केवली के दर्शन और ज्ञान को युगपत नहीं मानते । १९६ दिगम्बर परम्परा के अनुसार केवलदर्शन और केवलज्ञान युगपत होते हैं । १९७ आचार्य उमास्वाति का भी यही अभिमत रहा है। मति-श्रुत आदि का उपयोग क्रम से होता है, युगपत नहीं । केवली में दर्शन और ज्ञानात्मक उपयोग प्रत्येक क्षण में युगपत होता है । १९८ नियमसार में आचार्य कुन्दकुन्द ने स्पष्ट लिखा है कि जैसे सूर्य में प्रकाश और आतप एक साथ रहता है उसी प्रकार केवली में दर्शन और ज्ञान एक साथ रहते हैं । १९९ तीसरी परम्परा चतुर्थ शताब्दी के महान् दार्शनिक आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की है। उन्होंने सन्मति - तर्कप्रकरण ग्रन्थ में लिखा है - मनःपर्याय तक तो ज्ञान और दर्शन का भेद सिद्ध कर सकते हैं किन्तु केवलज्ञान केवलदर्शन में भेद सिद्ध करना संभव नहीं । २०० दर्शनावरण और ज्ञानावरण का क्षय युगपत होता है। उस क्षय से होने वाले उपयोग में यह प्रथम होता है, यह बाद में होता है' इस प्रकार का भेद किस प्रकार से किया जा सकता है? २०९ कैवल्य की प्राप्ति जिस समय होती है उस समय सर्वप्रथम मोहनीय कर्म का क्षय होता है। जब दर्शनावरण और ज्ञानावरण दोनों के क्षय में काल का भेद नहीं है, तब यह किस आधार पर कहा जा सकता है कि प्रथम केवलदर्शन होता है, बाद में केवलज्ञान। इस समस्या के समाधान के लिए कोई यह माने कि दोनों का युगपत सद्भाव है तो यह भी उचित नहीं, क्योंकि एक साथ दो उपयोग नहीं हो सकते। इस समस्या का सबसे सरल और तर्कसंगत समाधान यह है कि केवली अवस्था में दर्शन और ज्ञान में भेद नहीं होता । दर्शन और ज्ञान को पृथक्-पृथक् मानने से एक समस्या और उत्पन्न होती है कि यदि केवली एक १९५. १९४. आवश्यकनिर्युक्ति गाथा १७७ - १७१ . विशेषावश्यकभाष्य गाथा ३०८८-३१३५ १९६. भगवती सूत्र १८/८ तथा भगवती, शतक १४, उद्देशक १० १९७. गोम्मटसार, जीवकाण्ड ७३० और द्रव्यसंग्रह ४४ १९८. तत्त्वार्थसूत्र भाष्य १/३१ १९९. नियमसार, गाथा १५९ २००. सन्मति० प्रकरण २/३ २०१. सन्मति ० प्रकरण १ / ९ [७८]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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