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________________ ४७८] [प्रज्ञापना सूत्र ६१३. रयणप्पभापुढविनेरइया णं भंते! किं संतरं उववजंति ? निरंतरं उववजंति ? गोयमा! संतरं पि उववजंति, निरंतरं पि उववजंति। [६१३ प्र.] भगवन् ! क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नारक सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [६१३ उ.] गौतम! (वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। ६१४. एवं जाव अहेसत्तमाए संतरं पि उववज्जति, निरंतर पि उववज्जंति। [६१४] इसी प्रकार सातवीं नरकपृथ्वी तक (के नैरयिक) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। ६१५. असुरकुमारा णं भंते! देवा किं संतरं उववजंति ? निरंतरं उववजंति ? [६१५ प्र.] भगवन्! असुरकुमार देव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं? [६१५ उ.] गौतम! सान्तर भी होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। ६१६. एवं जाव थणियकुमारा संतरं पि उववजंति निरंतरं पि उववति। [६१६] इसी प्रकार स्तनितकुमार देवों तक सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं? ६१७. पुढविकाइया णं भंते! किं संतरं उववज्जति ? निरंतरं उववजंति ? गोयमा! नो संतरं उववजंति, निरंतरं उववति । [६१७. प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [६१७ उ.] गौतम! (वे) सान्तर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं। ६१८. एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं उववज्जति, निरंतर उववति । [६१८] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक सान्तर उत्पन्न नहीं होते, किन्तु निरन्तर उत्पन्न होते हैं (ऐसा कहना चाहिए)। ६१९. बेइंदिया णं भंते! किं संतरं उववजंति ? निरंतर उववजंति ? गोयमा! संतरं पि उववजंति, निरंतरं पि उववजंति। [६१९ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव क्या सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ? [६१९ उ.] गौतम! (वे) सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी उत्पन्न होते हैं। ६२०. एवं जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिया। [६२०] इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों तक कहना चाहिए। ६२१. मणुस्सा णं भंते! किं संतरं उववजतिं ? निरंतरं उववजंति ? गोयमा! संतरं पि उववजंति, निरंतरं पि उववजंति। [६२१. प्र.] भगवन्! मनुष्य सान्तर उत्पन्न होते हैं अथवा निरन्तर उत्पन्न होते हैं ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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