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________________ ४७६] [प्रज्ञापना सूत्र [६०३ उ.] गौतम! (उनका उपपात-विरहकाल) जघन्यतः एक समय का तथा उत्कृष्ट संख्यातलाख वर्ष का है। ६०४. विजय-वेजयंत-जयंताऽपराजियदेवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं। [६०४ प्र.] भगवन् ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों का उपपातविरह कितने काल तक का कहा है ? [६०४ उ.] गौतम! (इनका उपपात-विरहकाल) जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल का है। ६०५. सव्वट्ठसिद्धगदेवा णं भंते! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं पलिओवमस्स संखेज्जइभागं। [६०५ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देवों का उपपातविरह कितने काल तक का कहा गया है ? [६०५ उ.] गौतम! जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट पल्योपम का संख्यातवां भाग है। ६०६. सिद्धा णं भंते! केवतियं कालं विरहिया सिझणयाए पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा। [६०६ प्र.] भगवन् ! सिद्ध जीवों का उपपात-विरह कितने काल तक का कहा गया है ? [६०६ उ.] गौतम! उनका उपपात-विरहकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट छह मास का है। ६०७. रयणप्पभापुढविनेरड्या णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उव्वट्टणाए पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं एगं समयं, उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहत्ता ? [६०७ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभा के नैरयिक कितने काल तक उद्वर्तना से विरहित कहे गए हैं ? [६०७ उ.] गौतम! (वे) जघन्य एक समय तक तथा उत्कृष्ट चौबीस मुहूर्त तक उद्वर्तना से विरहित कहे हैं। ६०८. एवं सिद्धवजा उव्वट्टणा वि भाणितव्वा जाव अणुत्तरोववाइय त्ति। नवरं जोइसियवेमाणिएसु चयणं ति अहिलावो कायव्वो। दारं २॥ [६०८] जिस प्रकार उपपात-विरह का कथन किया है, उसी प्रकार सिद्धों को छोड़कर अनुत्तरौपपातिक देवों तक (पूर्ववत्) उद्वर्तनाविरह भी कह लेना चाहिए। विशेषता यह है कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के निरूपण में (उद्वर्त्तना के स्थान पर) 'च्यवन' शब्द का अभिलाप (प्रयोग) करना चाहिए। विवेचनद्वितीय चतुर्विंशतिद्वारः नैरयिकों से लेकर अनुत्तरौपपातिक जीवों तक के उपपात और उद्वर्तना के विरहकाल की प्ररूपणा–प्रस्तुत ४० सूत्रों (सू. ५६९ से ६०८ तक) में विभिन्न
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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