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[ प्रज्ञापना सूत्र
[५७९ उ.] गौतम! (वे) प्रतिसमय उपपात से अविरहित कहे गए हैं । अर्थात् उनका उपपात निरन्तर होता ही रहता है ।
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५८०. एवं आउकाइयाण वि तेउकाइयाण वि वाउकाइयाण वि वणप्फइकाइयाण वि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
[५८०प्र.] इसी प्रकार अप्कायिक भी तेजस्कायिक भी, वायुकायिक भी, एवं वनस्पतिकायिक जीव भी प्रतिसमय उपपात अविरहित कहे गए हैं।
[ ५८१.] बेइंदिया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहणणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुनं ।
[५८१ प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों का उपपातविरह कितने काल तक कहा गया है ?
[५८१ उ.] गौतम! जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त तक (उनका उपपात-विरहकाल रहता है ।)
५८२. एवं तेइंदिय - चउरिंदिया ।
[५८२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय एवं चतुरिन्द्रिय के उपपातविरहकाल के विषय में समझ लेना चाहिए। ५८३. सम्मुच्छिमपंचेदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।
[५८३ प्र.] भगवन् ! सम्मूच्छिम पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?
[५८३ उ.] गौतम! (उनका उपपातविरह) जघन्य एक समय तक का और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक का है।
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५८४. गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते! केवतियं कालं विरहिता उववाएणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहणेणं एगं समयं, उक्कोसेणं बारस मुहुत्ता ।
[५८४ प्र.] भगवन्! गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गये हैं ? [५८४ उ.] गौतम! (वे) जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट बारह मुहूर्त्त तक (उपपात से विरहित रहते हैं ।)
५८५. सम्मुच्छिममणुस्सा णं भंते! केवतियं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?
गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उक्कोसेणं चउव्वीसं मुहुत्ता।
[५८५ प्र.] भगवन्! सम्मूच्छिम मनुष्य कितने काल तक उपपात से विरहित कहे गए हैं ?