SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 560
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४५९ जघन्यादि सामान्य पुदगल स्कन्धों की विविध अपेक्षाओं से पर्यायप्ररूपणा.. ५५४. [१] जहण्णपदेसियाणं भंते! खंधाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणद्वेणं? - गोयमा! जहण्णपदेसिते खंधे जहण्णपएसियस्स खंधस्य दव्वट्ठयाएं तुल्ले; पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिते, जति हीणे पदेसहीणे, अह अब्भतिए पदेसमब्भतिए; ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस उवरिल्लचउफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते। [५५४-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५५४-१. उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)। [प्र.] भगवान् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है (कि जघन्यप्रदेशी स्कन्ध के अनन्त पर्याय [उ.] गौतम ! एक जघन्यप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्यप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा 'से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से कदाचित् हीन है, कदाचित् तुल्य हैं और कदाचित् अधिक है। यदि हीन हो तो एक प्रदेशहीन होता है, और यदि अधिक हो तो भी एक प्रदेश अधिक होता है। स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है और वर्ण, गन्ध, रस तथा ऊपर के चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है । -- [२] उक्कोसपएसियाणं भंते! खंधाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणटेणं? गोयमा! उक्कोसपएसिए खंधे उक्कोसपएसियस्स खंधस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। ... [५५४-२ प्र.] भगवन् ! उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? " [५५४-२ उ.] गौतम ! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)। 3 [प्र.]भगवन् ! किस अपेक्षा से आप ऐसा कहते हैं (कि उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं) ? [उ.] गौतम ! उत्कृष्ट प्रदेशी स्कन्ध, दूसरे उत्कृष्टप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से भी चतुःस्थानपतित है, किन्तु वर्णादि तथा अष्टस्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy