________________
[४५७
पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
से केणठेणं?
गोयमा! जहण्णगुणसीते अणंतपदेसिए जहण्णगुणसीतस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते वण्णदिपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते, सीतफासपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं सत्तफासपज्जवेहिं छट्ठाणवडिते।
[५५२-१प्र.] भगवान् ! जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५५-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय (कहे हैं)।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम ! एक जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्यगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है; शीतस्पर्श के पर्यायों अपेक्षा से तुल्य है और शेष सात स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसगुणसीते वि। [५५२-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसगुणसीते वि एवं चेव। नवरं छट्ठाणवडिते।
[५५२-३] मध्यमगुणशीत अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की पर्याय-सम्बन्धी प्ररूपणा भी इसी प्रकार करनी चाहिए। विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है। __५५३. एवं उसिणे निद्धे लुक्खे जहा सीते। परमाणुपोग्गलस्स तहेव पडिवक्खो, सव्वेसिं न भण्णइ त्ति भाणितव्वं।
[५५३] जिस प्रकर (जघन्यादियुक्त) शीतस्पर्श-स्कन्धों के पर्यायों के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों (वाले उन-उन -स्कन्धों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए।) इसी प्रकर परमाणुपुद्गल में इन सभी का प्रतिपक्ष नहीं कहा जाता, यह कहना चाहिए।
विवेचना-जघन्यादियुक्त वर्णादि-पुद्गलों की पर्याय-प्ररूपणा- प्रस्तुत सोलह सूत्रों (सू. ५३७ से ५५३ तक) में कृष्णादि वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शों के परमाणुपुद्गलों, द्विप्रदेशी से संख्यातअसंख्यात-अनन्त प्रदेशी स्कन्धों तक के पर्यायों की प्ररूपणा की गई है।
कृष्णदि वर्णों तथा गन्ध-रस स्पर्शों के पर्याय -कृष्ण, नील आदि पांच वर्णों, दो प्रकार के गन्धों, पांच प्रकार के रसों और आठ प्रकार के स्पर्शों के प्रत्येक के तरतमभाव की अपेक्षा से अनन्तअनन्त विकल्प होते हैं। तदनुसार कृष्ण आदि अनन्त-अनन्त प्रकार के हैं।
जघन्यगुण उत्कृष्टगुण एवं मध्यमगुण कृष्णादि वर्ण की व्याख्या- कृष्णवर्ण की सबसे कम