________________
पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४४१ [५२७-१] जहण्णोगाहणयाणं भंते ! चउपएसियाणं पुच्छा। गोयमा! जहा जहण्णोगाहणए दुपएसिते तहा जहण्णोगाहणए चउपएसिते। [५२७-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी पुद्गलों के पर्याय कितने कहे है ?
[५२७-१] गौतम! जघन्य अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी पुद्गल-पर्याय जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के पर्याय की तरह (समझना चाहिए)। _ [२] एवं जहा उक्कोसोगाहणए दुपएसिए तहा उक्कोसोगाहणए चउप्पएसिए वि।
[५२७-२] जिस प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के पर्यायों का कथन किया गया है, उसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी पुद्गल -पर्यायों का कथन करना चाहिये।
[३] एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि चउप्पएसिते। णवरं ओगाहणट्ठयाते सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भइए-जति हीणे पएसहीणे, अहऽब्भइते पएसब्भतिए।
[५२७-३] इसी प्रकार मध्यम अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी स्कन्ध का पर्यायविषयक कथन करना चाहिए। विशेष यह है कि अवगाहना की अपेक्षा से कदाचित् हीन, कदाचित्, तुल्य, कदाचित् अधिक होता है। यदि हीन हो तो एक प्रदेश हीन होता है, यदि अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक होता है।
५२८. एवं जाव दसपएसिए णेयव्वं। णवरमजहण्णुक्कोसोगाहणए पदेसपरिवुड्डी कातव्वा, जाव दसपएसियस्स सत्त पएसा परिवड्डिन्जंति।
[५२८] इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध तक का (पर्यायविषयक कथन करना चाहिए।) विशेष यह है कि मध्यम अवगाहना वाले में एक-एक प्रदेश की परिवृद्धि करनी चाहिए। इस प्रकार यावत् दशप्रदेशी तक सात प्रदेश बढ़ते हैं।
५२९ [१] जहण्णोगाहणगाणं भंते ? संखेज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चति ?
गोयमा! जहण्णोगाहणगे संखेज्जपएसिए जहण्णोगाहणगस्स संखेज्जपएसियस्स दव्वट्ठयाते तुल्ले, पएसट्ठयाते दुट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाते तुल्ले, ठितीए चउट्ठाणवडिए, वण्णादिचउफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
[५२९-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले संख्यातप्रदेशी पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५२९-१ उ.] गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य अवगाहना वाले संख्यात-प्रदेशी पुद्गलों (स्कन्धों) के अनन्त पर्याय हैं?