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[प्रज्ञापना सूत्र [प्र.] भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक जघन्य अवगाहना वाला द्विप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से भी तुल्य है, अवगाहना की अपेक्षा से तुल्य है, (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, कृष्ण वर्ण के पर्यायों के दृष्टि से षट्स्थानपतित हैं, शेष वर्ण, गन्ध और रस के पर्यायों की दृष्टि से षट्स्थानपतित है तथा शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। हे गौतम! इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशिक पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं।
[२] उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव।
[५२५-२] उत्कृष्ट अवगाहना वाले [द्विप्रदेशी पुद्गल-(स्कन्धों) के पर्यायों] के विषयों में भी इसी प्रकार (कहना चाहिए।)
[३] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणओ नत्थि। [५२५-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम)अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध नहीं होते। ५२६. [१] जहण्णोगाहणयाणं भंते! तिपएसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा। से केणटेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! जहा दुपएसिते जहण्णोगाहणते। [५२६-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं? [५२६-१ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे गए हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं।
[उ.] गौतम! जैसे जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी [पुद्गलों की पर्यायविषयक वक्तव्यता कही है,] वैसी ही (वक्तव्यता) जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के विषय में कहनी चाहिए।
[२] उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव। [५२६-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के पर्यायों के विषय में कहना
चाहिए।
[३] एवं अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए वि। ___ [५२६-३] इसी तरह मध्यम अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के (पर्यायों के ) विषय में (कहना चाहिए।