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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४३७ पुद्गलों के विषय में पर्याय-प्ररूपणा क्रमशः की गई है।
परमाणुपुद्गलों में अनन्तपर्यायों की सिद्धि प्रस्तुत में यह प्रतिपादन किया गया है कि परमाणु द्रव्य और प्रत्येक द्रव्य अनन्त पर्यायों से युक्त होता है। एक परमाणु दूसरे परमाणु से द्रव्य, प्रदेश और अवगाहना की दृष्टि से तुल्य होता है, क्योंकि प्रत्येक परमाणु एक-एक स्वतन्त्र द्रव्य है। वह निरंश ही होता है तथा नियमतः आकाश के एक ही प्रदेश में अवगाहना करके रहता है। इसलिए इन तीनों की अपेक्षा से वह तुल्य है। किन्तु स्थिति की अपेक्षा से एक परमाणु दूसरे परमाणु से चतुःस्थानपतित हीनाधिक होता है, क्योंकि परमाणु की जघन्य स्थिति एक समय की और उत्कृष्ट असंख्यातकाल की है, अर्थात् —कोई पुद्गल परमाणुरूप पर्याय में कम से कम एक समय तक रहता है और अधिक से अधिक असंख्यात काल तक रह सकता है। इसलिए सिद्ध है कि एक परमाणु दूसरे परमाणु से चतु:स्थानपतित हीन या अधिक होता है तथा वर्ण, गन्ध, रस एवं स्पर्श, विशेषतः चतुःस्पर्शों की अपेक्षा से परमाणु-पुद्गल में षट्स्थानपतित हीनधिकता होती है। अर्थात्—वह असंख्यात-संख्यात अनन्तभागहीन या संख्यात-असंख्यात-अनन्तगुण हीन अथवा असंख्यात-संख्यात-अनन्तभाग अधिक अथवा संख्यात-असंख्यात-अनन्तगुण अधिक है।
प्रदेशहीन परमाणु में अनन्त पर्याय कैसे ?—परमाणु को जो 'अप्रदेशी' कहा गया है, वह द्रव्य की अपेक्षा से है, काल और भाव की अपेक्षा से वह अप्रदेशी या निरंश नहीं है।
परमाणु : चतुःस्पर्शी और षट्स्थानपतित—एक परमाणु में आठ स्पर्शों में से सिर्फ चार स्पर्श ही होते हैं। वे ये हैं—शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष। बल्कि असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक में ये चार ही स्पर्श होते हैं। कोई-कोई अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी चार स्पर्श वाले होते हैं। इसी प्रकार एकप्रदेशावगाढ से लेकर संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल (स्कन्ध) भी चार स्पर्शों वाले होते हैं। अतः इन अपेक्षाओं से परमाणु को षट्स्थानपतित समझना चाहिए।
द्विप्रदेशी स्कन्ध अवगाहना की दृष्टि से हीन, अधिक और तुल्य : क्यों और कैसे—जब दो द्विप्रदेशी स्कन्ध आकाश के दो-दो प्रदेशों या दोनों-एक-एक प्रदेश में अवगाढ हों, तब उनकी अवगाहना तुल्य होती है। किन्तु जब एक द्विप्रदेशी स्कन्ध एक प्रदेश में अवगाढ हो और दूसरा दो प्रदेशों में, तब उनमें अवगाहना की दृष्टि से हीनाधिकता होती है। जो एक प्रदेश में अवगाढ है, वह दो प्रदेशों में अवगाढ स्कन्ध की अपेक्षा एकप्रदेश हीन अवगाहना वाला कहलाता है, जबकि दो प्रदेशों में अवगाढ स्कन्ध एकप्रदेशावगाढ की अपेक्षा एकप्रदेश-अधिक अवगाहना वाला कहलाता है। द्विप्रदेशी स्कन्धों की अवगाहना में इससे अधिक हीनाधिकता संभव नहीं है।
१. पण्णवणासुत्तं (मूलपाठटिप्पणयुक्त) भाग १, पृ. १५१ से १५४ तक २. (क) प्रज्ञापनासूत्र म. वृत्ति, पत्रांक २०१ (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी पृ. ७९८-८०१