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________________ ४३६] [प्रज्ञापना सूत्र [उ.] गौतम! एक गुण काला एक पुद्गल, दूसरे एक गुण काले पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है तथा अवशिष्ट (कृष्णवर्ण के अतिरिक्त अन्य) वर्णों, गन्धों, रसों और स्पों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है एवं अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से (भी) षट्स्थानपतित है। ५२०. एवं जाव दसगुणकालए। [५२०] इसी प्रकार यावत् दश गुण काले (पुद्गलों) की (पर्याय सम्बन्धी वक्तव्यता समझनी चाहिए।) ५२१. संखेज्जगुणकालए वि एवं चेव। नवरं सट्ठाणे दुट्ठाणवडिते। [५२१] संख्यातगुण काले (पुद्गलों) का (पर्याय विषयक कथन) भी इसी प्रकार (जानना चाहिए।) विशेषता यह है कि (वे) स्वस्थान में द्विस्थानपतित हैं। ५२२. एवं असंख्येज्जगुणकालए वि। णवरं सट्ठाणे चउट्ठाणवडिते। [५२२] इसी प्रकार असंख्यातगुण काले (पुद्गलों) की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता समझनी चाहिए। विशेष यह है कि (वे) स्वस्थान में चतुःस्थानपतित हैं। ५२३. एवं अणंतगुणकालए वि। नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [५२३] इसी तरह अनन्तगुणे काले (पुद्गलों) की पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता जाननी चाहिए। विशेष यह है कि (वे) स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं। ५२४. एवं जहा कालवण्णस्स वत्तव्वया भणिया तहा सेसाण वि वण्ण-गंध-रस-फासाणं वत्तव्वया भाणितव्वा जाव अणंतगुणलुक्खे। [५२४] इसी प्रकार जैसे कृष्णवर्ण वाले (पुद्गलों) की (पर्यायसम्बन्धी वक्तव्यता कही है,) वैसे ही शेष सब वर्णों, गन्धों रसों और स्पर्शों (वाले पुद्गलों) की (पर्यायसम्बन्धी) वक्तव्यता यावत् अनन्तगुण रूक्ष (पुद्गलों) की (पर्यायों सम्बन्धी) वक्तव्यता तक कहनी चाहिए। विवेचन–परमाणुपुद्गल आदि की पर्यायसम्बन्धी प्ररूपणा–प्रस्तुत इक्कीस सूत्रों (सू. ५०४ से ५२४ तक) में विविध प्रकार के पुद्गलों की विभिन्न अपेक्षाओं से पर्यायसम्बन्धी प्ररूपणा की गई है। रूपी-अजीव-पर्यायप्ररूपणा का क्रम-(१) परमाणुपुद्गल तथा द्वि-त्रि-दश-संख्यातअसंख्यात-अनन्तप्रदेशिक पुद्गलों के विषय में, (२) आकाशीय एकप्रदेशावगाढ से लेकर असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के विषय में, (३) एकसमयस्थितिक से असंख्यातसमयस्थितिक पुद्गलों के विषय में, (४) एकगुण कृष्ण से अनन्तगुण कृष्ण पुद्गलों के विषय में तथा शेष वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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