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________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४१७ से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! जहण्णोहिणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहणोहिणाणिस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्ठयाते तुल्ले, पदेसट्ठयाते तुल्ले, ओगाहणट्ठयाते चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं आभिणिबोहियणाण-सुतणाणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते, ओहिणाणपज्जवेहिं तुल्ले, अण्णाणा णत्थि, चक्खुदंसणपज्जवेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [४८७-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४८७-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए हैं। ___ [प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं 'जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' [उ.] गौतम! एक जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक, दूसरे जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है; स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है तथा वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों और आभिनिबोधिकज्ञान तथा श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा से तुल्य है। (इनमें) अज्ञान नहीं कहना चाहिए। चक्षुदर्शन-पर्यायों और अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [२] एवं उक्कोसोहिणाणी वि। [४८७-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट अवधिज्ञानी पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीवों का (पर्याय विषयक कथन करना चाहिए।) [३] अजहण्णुक्कोसोहिणाणी वि एवं चेव। नवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [४८७-३] मध्यम अवधिज्ञानी (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों) की (भी पर्यायप्ररूपणा) इसी प्रकार करनी चाहिए। विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित (हीनाधिक) हैं। __४८८. जहा आभिणिबोहियणाणी तहा मइअण्णाणी सुयअण्णाणी य। जहा ओहिणाणी तहा विभंगणाणी वि चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी य जहा आभिणिबोहियणाणी। ओहिदसणी जहा ओहिणाणी। जत्थ णाणा तत्थ अण्णाणा णत्थि, जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि, जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थि त्ति भाणितव्वं। ___ [४८८] जिस प्रकार आभिनिबोधिकज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय की पर्याय-सम्बन्धी वक्तव्यता है, उसी प्रकार मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञन्नी की है; जैसी अवधिज्ञानी पंचेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याय-प्ररूपणा है, वैसी
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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