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________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४१५ से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ? ___गोयमा! जहण्णगुणकालए पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहण्णगुणकालगस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते ठितीए, चउट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं तिहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते। [४८३-१ प्र.] भगवन् ! जघन्यगुणकृष्ण पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों के कितने पर्याय हैं ? [४८३-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि 'जघन्यगुणकृष्ण पंचेन्द्रियतिर्यंचों के अनन्त पर्याय हैं ?' [उ.] गौतम! एक जघन्यगुण काला पंचेन्द्रियतिर्यंञ्च, दूसरे जघन्यगुण काले पंचेन्द्रियतिर्यञ्च से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहनों की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों की अपेक्षा तुल्य है, शेष वर्ण, गंध, रस, स्पर्श तथा तीन ज्ञान, तीन अज्ञान एवं तीन दर्शनों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [२] एवं उक्कोसगुणकालए वि। ___ [४८३-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले (पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों के पर्याय के विषय में भी समझना चाहिए।) _[३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [४८३-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) गुण काले पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चों के (पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए।) विशेष यह है कि वे स्वस्थान (कृष्णगुणपर्याय) में भी षट्स्थानपतित ४८४. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ठ फासा। __ [४८४] इस प्रकार पांचों वर्गों, दो गन्धों, पांच रसों और आठ स्पर्शों से (युक्त तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए।) ४८५. [१] जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते! पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! जहणाभिणिबोहियणाणी पंचेंदियतिरिक्खजोणिए जहण्णाभिणिबोहियणाणिस्स पंचेंदियतिरिक्खजोणियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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