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________________ ४१०] [प्रज्ञापना सूत्र [४७४-३] जिस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्याय के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार मध्यम स्थिति वाले द्वीन्द्रियों के पर्याय के विषय में कहना चाहिए। अन्तर इतना ही है कि स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित हैं। ४७५. [१] जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। . से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णगुणकालयाणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णगुणकालए बेइंदिए जहण्णगुणकालयस्स बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तिट्ठाणवडिते, कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले, अवसेसेहिं वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं णाणेहिं दोहि अण्णाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [४७५-१ प्र.] जघन्यगुण कृष्णवर्ण बाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [४७५- १ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि 'जघन्यगुणकाले द्वीन्द्रियों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' ___ [उ.] गौतम! एक जघन्यगुण कालद्वीन्द्रिय जीव, दूसरे जघन्यगुणकाले द्वीन्द्रिय जीव से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से चतु:स्थानपतित (न्यूनाधिक) है, स्थिति की अपेक्षा से त्रिस्थानपतित है, कृष्णवर्णपर्याय की अपेक्षा से तुल्य है, शेष वर्णों तथा गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से; दो ज्ञान, दो अज्ञान एवं अचक्षुदर्शन पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है। [२] एवं उक्कोसगुणकालए वि। [४७५-२] इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले द्वीन्द्रिय के पर्यायों के विषय में कहना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसगुणकालए वि एवं चेव। णवरं सट्ठाणे छट्ठाणवडिते। [४७५-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट गुण काले द्वीन्द्रिय जीवों का (पर्यायविषक कथन भी) इसी प्रकार (कहना चाहिए।) विशेष यह है कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित (हीनाधिक) होता है। ४७६. एवं पंच वण्णा दो गंधा पंच रसा अट्ठ फासा भाणितव्वा। [४७६] इसी तरह पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्शों का (पर्याय विषयक) कथन करना चाहिए। ४७७. [१] जहण्णाभिणिबोहियणाणीणं भंते! बेंदियाणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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