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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)]
[४०९ द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेश की अपेक्षा से तुल्य है, तथा अवगाहना की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) स्थिति की अपेक्षा त्रिस्थानपतित है, वर्ण, गंध रस एवं स्पर्श के पर्यायों, दो ज्ञानों, दो अज्ञानों तथा अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित (हीनाधिक) है।
[२] एवं उक्कोसोगाहणए वि। णवरं णाणा णत्थि।
[४७३-२] इसी प्रकार उत्कृट अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों का पर्यायविषयक कथन करना चाहिए। किन्तु उत्कृष्ट अवगाहना वाले में ज्ञान नहीं होता, इतना अन्तर है।
[३] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए जहा जहण्णोगाहणए। णवरं सट्ठाणे ओगाहणाए चउट्ठाणवडिते।
[४७३-३] अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्यायों के विषय में जघन्य अवगाहना वाले द्वीन्द्रिय जीवों के पर्यायों की तरह कहना चाहिए। विशेषता यह है कि स्वस्थान में अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है।
४७४. [१] जहण्णठितीयाणं भंते! बेइंदियाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति जहण्णठितीयाणं बेइंदियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?
गोयमा! जहण्णठितीए बेइंदिए जहण्णठितीयस्स बेइंदियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए तुल्ले, ओगाहणट्ठयाए चउठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्ण-गंध-रस-फासपज्जवेहिं दोहिं अणाणेहिं अचक्खुदंसणपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते।
[४७४-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय जीवों के कितने पर्याय हैं ? [४७४-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस दृष्टि से आप ऐसा कहते हैं कि जघन्य स्थिति वाले द्वीन्द्रिय के अनन्त पर्याय कहे हैं ?
[उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला द्वीन्द्रिय, दूसरे जघन्य स्थित वाले द्वीन्द्रिय से द्रव्यापेक्षया तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से (भी) तुल्य है, (किन्तु) अवगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है; तथा वर्ण, गन्ध रस और स्पर्श के पर्यायों, दो अज्ञानों एवं अचक्षुदर्शन के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
[२] एवं उक्कोसठितीए वि। णवरं दो णाणा अब्भहिया।
[४७४-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्वीन्द्रियजीवों का भी (पर्यायविषयक कथन करना चाहिए।) विशेष यह है कि इनमें दो ज्ञान अधिक कहना चाहिए।
[३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए जहा उक्कोसठितीए । णवरं ठितीए तिट्ठाणवडिते।