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[प्रज्ञापना सूत्र
है, परमाणु अप्रदेशी होता है, तथा द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी आदि स्कन्ध सप्रदेशी होते हैं।
क्षेत्र (अवगाहना) की अपेक्षा से नारकों में हीनाधिकता-अवगाहना का अर्थ सामान्यतयाः आकाशप्रदेशों को अवगाहन करना—उनमें समाना होता है। यहाँ उसका अर्थ है—शरीर की ऊँचाई। अवगाहना (शरीर की ऊँचाई) की अपेक्षा से सब नारक तुल्य नहीं है। जैसे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के वैक्रियशरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन हाथ
और छह अंगुल की है। आगे-आगे की नरकंपृथ्वियों में उत्तरोत्तर दुगुनी-दुगुनी अवगाहना होती है। सातवीं नरकपृथ्वी में अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की है। इस दृष्टि से किसी नारक से किसी नारक की अवगाहना हीन है, किसी की अधिक है, जबकि किसी की तुल्य भी है। यदि कोई नारक अवगाहना से हीन (न्यून) होगा तो वह असंख्यातभाग या संख्यातभाग हीन होगा, अथवा संख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण हीन होगा, किन्तु यदि कोई नारक अवगाहना में अधिक होगा तो असंख्यातभाग या संख्यातभाग अधिक होगा. अथवा संख्यातगण अधिक या असंखतगुण अधिक होगा। यह हीनाधिकता चतुःस्थानपतित कहलाती है। नारक असंख्यातभाग हीन या संख्यातभाग हीन अथवा संख्यातभाग अधिक या असंख्यातभाग अधिक इस प्रकार से होते हैं, जैसे - एक नारक की अवगाहना ५०० धनुष की है और दूसरे की अवगाहना है - अंगुल के असंख्यातवें भाग कम पांच सौ धनुष की। अंगुल का असंख्यातवाँ भाग पांच सौ धनुष का असंख्यातवाँ भाग है। अतः जो नारक अंगुल के असंख्यातवें भाग कम पांच सौ धनुष की अवगाहना वाला है, वह पांच सौ धनुष की अवगाहना वाले नारक की अपेक्षा असंख्यातभाग हीन हैं, और पांच सौ धनुष की अवगाहना वाला दूसरे नारक से असंख्यातभाग अधिक है। इसी प्रकार एक नारक ५०० धनुष की अवगाहना वाला है, जबकि दूसरा उससे दो धनुष कम है, अर्थात् ४९८ धनुष की अवगाहना वाला है। दो धनुष पांच सौ धनुष का संख्यातवाँ भाग है। इस दृष्टि से दूसरा नारक पहले नारक से संख्यातभव हीन हुआ, जबकि पहला (पांच सौ धनुष वाला) नारक दूसरे नारक (४९८ धनुष वाले) से संख्यातभाग अधिक हुआ । इसी प्रकार कोई नारक एक सौ पच्चीस धनुष की अवगाहना वाला है और दूसरा पूरे पांच -सौ धनुष की अवगाहना वाला है। एक सौ पच्चीस धनुष के चौगुने पांच सौ धनुष होते है। इस दृष्टि से १२५ धनुष की अवगाहना वाला, ५०० धनुष की अवगाहना वाले नारक से संख्यातगुण हीन हुआ और पांच सौ धनुष की अवगाहना वाला, एक सौ पच्चीस धनुष की अवगाहना वाले नारक से संख्यातगुण अधिक हुआ। इसी प्रकार कोई नारक अपर्याप्त अवस्था में अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना वाला है और दूसरा नारक पांच सौ धनुष की अवगाहना वाला है। अंगुल का असंख्यातवाँ भाग असंख्यात से गुणित होकर पांच सौ धनुष बनता है। अतः अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना वाला नारक परिपूर्ण पांच सौ धनुष की अवगाहना वाले नारक से असंख्यातगुण हीन हुआ और पांच सौ धनुष की अवगाहना वाला नारक, अंगुल के असंख्यातवें भाग की अवगाहना वाले नारक से असंख्यातगुण अधिक हुआ।