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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३६१ ४१८. [१] माहिंदे कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहणणेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्त साहियाइं सागरोवमाइं। [४१८-१ प्र.] भगवन्! माहेन्द्रकल्प के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है। [४१८-१ उ.] गौतम! जघन्य दो सागरोपम से कुछ अधिक की और उत्कृष्ट सात सागरोपम से कुछ अधिक की है। [२] माहिंदे अपज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [४१८-२ प्र.] भगवन् ! माहेन्द्रकल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४१८-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है । [३] माहिदे पज्जत्ताणं देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सातिरेगाइं दो सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं सातिरेगाइं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई। [४१८-३ प्र.] भगवन्! माहेन्द्रकल्प में पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४१८-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दो सागरोपम से कुछ अधिक की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम से कुछ अधिक की है । ४१९. [१] बंभलोए कप्पे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं । [४१९-१ प्र.] भगवन्! ब्रह्मलोककल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४१९-१ उ.] गौतम! जघन्य सात सागरोपम की और उत्कृष्ट दस सागरोपम की है। [२] बंभलोए अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४१९-२ प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प में अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४१९-२ उ.] गौतम! (उनकी) जघन्य (स्थिति) भी अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट (स्थिति) भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] बंभलोए पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। [४१९-३ प्र.] भगवन्! ब्रह्मलोक में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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