________________
चतुर्थ स्थितिपद]
[३५५ विवेचन—ज्योतिष्क देव-देवियों की स्थिति का निरूपण—प्रस्तुत बारह सूत्रों (सू. ३९५ से ४०६ तक) में ज्योतिष्क देवों और देवियों के (औधिक, अपर्याप्तकों एवं पर्याप्तकों) की तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा के विमानों के देव-देवियों (औधिक, अपर्याप्तकों और पर्याप्तकों) की स्थिति का निरूपण किया गया है। वैमानिक देवों की स्थिति की प्ररूपणा
४०७. [१] वेमाणियाणं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। [४०७-१ प्र.] भगवन् ! वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४०७-१ उ.] गौतम! (वैमानिक देवों की स्थिति) जघन्य एक पल्यापम की है और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है।
[२] अपज्जत्तयवेमाणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४०७-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तक वैमानिक देकों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [४०७-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयवेमाणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। [४०७-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त वैमानिक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है?
[४०७-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की है।
४०८. [१] वेमाणिणीणं भंते! देवीणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं पलिओवमं, उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाइं । [४०८-१ प्र.] भगवन्! वैमानिक देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४०८-१ उ.] गौतम! जघन्य एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट पचपन पल्योपमों की है। [२] अपज्जत्तियाणं वेमाणिणीणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४०८-२ प्र.] भगवन्! वैमानिक अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४०८-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तियाणं वेमाणिणीणं देवीणं पुच्छा ।