SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३५३ ४०३. [१] णक्खत्तविमाणे देवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णं चउभागपलिओवमं उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं। [४०३-१ प्र.] भगवन्! नक्षत्रविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४०३-१ उ.] गौतम! जघन्य पल्योपम के चतुर्थभाग की और उत्कृष्ट अर्द्धपल्योपम की है। [२] णक्खत्तविमाणे अपज्जत्तदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४०३-२ प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [४०३-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] णक्खत्तविमाणे पज्जत्तदेवाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं। [४०३-३ प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४०३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई पल्योपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम अर्द्ध-पल्योपम की है। ४०४. [१] नक्खत्तविमाणे देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउभागपलिओवमं। [४०४-१ प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है? [४०४-१ उ.] गौतम! जघन्य पल्योपम का चतुर्थभाग है और उत्कृष्ट कुछ अधिक चौथाई पल्योपम की है। [२] णक्खत्तविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [४०४-२ प्र.] भगवन् ! नक्षत्रविमान में अपर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [४०४-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] नक्खत्तविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहत्तूणं, उक्कोसेणं सातिरेगं चउभागपलिओवमं अंतोमुहत्तूणं। [४०४-३ प्र.] भगवन्! नक्षत्रविमान में पर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? ____ [४०४-३ उ.] गौतम! जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त कम चौथाई पल्योपम की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग से कुछ अधिक की है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy