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चतुर्थ स्थितिपद]
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गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं। [३९९-१ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३९९-१ उ.] गौतम! जघन्य पल्योपम के चौथाई भाग की और उत्कृष्ट एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है।
[२] सूरविमाणे अपज्जत्तदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३९९-२ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९९-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] सूरविमाणे पज्जत्तदेवाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतो मुहुत्तूणं, उक्कोसेणं पलिओवमं वाससहस्समब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं।
[३९९-३ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३९९-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चतुर्थभाग की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम की है।
४०० [१] सूरविमाणे देवीणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णणं चउभागपलिओवमं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससतेहिमब्भहियं।
[४००-१ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४००-१ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) पल्योपम के चतुर्थभाग की है और उत्कृष्ट पांच सौ वर्ष अधिक अर्द्धपल्योपम की है।
[२] सूरविमाणे अपज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहत्तं। [४००-२ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में अपर्याप्त देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [४००-२ उ.] गौतम! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] सूरविमाणे पज्जत्तियाणं देवीणं पुच्छा।
गोयमा! जहण्णेणं चउभागपलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं, उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पंचहिं वाससतेहिं अब्भहियं अंतोमुहुत्तूणं।
[४००-३ प्र.] भगवन् ! सूर्यविमान में पर्याप्तक देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है? [४००-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम पल्योपम के चौथाई भाग की है और उत्कृष्ट