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________________ ३३८] [प्रज्ञापना सूत्र [३७४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की कही गई है। ३७५. [१] जलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते! केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। [३७५-१ प्र.] भगवन् ! जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की कितने काल की स्थिति कही गई है? [३७५-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। [२] अपज्जत्तयजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३७५-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की कितनी स्थिति कही गई है? [३७५-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तूणा। [३७५-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७५-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। ३७६. [१] सम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी । [३७६-१ प्र.] भगवन् ! सम्मूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७६-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि की है। [२] अपज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३७६-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूछिम जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७६-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयसम्मुच्छिमजलयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी अंतोमुहुत्तूणा ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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