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चतुर्थ स्थितिपद]
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३७३. [१] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ।
गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। ___ [३७३-१ प्र.] भगवन्! सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७३-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि (करोड़ पूर्व) की है। [२] अपज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[३७३-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७३-२ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयसम्मच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तूणा।
[३७३-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। ३७४. [१] गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। [३७४-१. प्र.] भगवन् ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही
[३७४-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। [२] अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं।
[३७४-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तगर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[३७४-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। [३] पज्जत्तयगब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। [३७४-३ प्र.] भगवन्! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है?