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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३३७ ३७३. [१] सम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहणणेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी। ___ [३७३-१ प्र.] भगवन्! सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७३-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट पूर्वकोटि (करोड़ पूर्व) की है। [२] अपज्जत्तयसम्मुच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३७३-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७३-२ उ.] गौतम! (उनकी स्थिति) जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तयसम्मच्छिमपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं पुवकोडी अंतोमुहुत्तूणा। [३७३-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सम्मूछिम पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७३-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि की है। ३७४. [१] गब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं। [३७४-१. प्र.] भगवन् ! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही [३७४-१ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट तीन पल्योपम की कही गई है। [२] अपज्जत्तयगब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं। [३७४-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्तगर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३७४-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की कही गई है। [३] पज्जत्तयगब्भवक्कंतियपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई। [३७४-३ प्र.] भगवन्! गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों की स्थिति कितने काल की है?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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