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________________ चतुर्थ स्थितिपद] [३२७ [३५१-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक सुपर्णकुमार देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई [३५१-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम देशोन दो पल्योपम की है। ३५२. [१] सुवण्णकुमारीणं भंते! देवीणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई, उक्कोसेणं देसूणं पलिओवमं। [३५२-१ प्र.] भगवन् ! सुपर्णकुमार देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [३५२-१ उ.] गौतम! जघन्य दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट देशोन पल्योपम की है। [२] अपज्जत्तियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमहत्तं। [३५२-२ प्र.] भगवन् ! अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई [३५२-२ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की है। [३] पज्जत्तियाणं पुच्छा। गोयमा! जहण्णेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं देसूणं पलिओवमं अंतोमुहुत्तूणं। - [३५२-३ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त सुपर्णकुमार देवियों की स्थिति कितने काल तक की कही गई [३५२-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम देशोन पल्योपम की है। __ ३५३. एवं एएणं अभिलावेणं ओहिय-अपज्जत्त-पज्जत्तसुत्तत्तयं देवाण य देवीण य णेयव्वं जाव थणियकुमाराणं जहा णागकुमाराणं (सु. ३४९)। __ [३५३] इस प्रकार इस अभिलाष से (इसी कथन के अनुसार) औधिक, अपर्याप्तक और पर्याप्तक के तीन-तीन सूत्र (आगे के भवनवासी) देवों और देवियों के विषय में, यावत् स्तनितकुमार तक नागकुमारों (के कथन) की तरह समझ लेना चाहिए। विवेचन सामान्य देव-देवियों तथा भवनवासी देव-देवियों की स्थिति का निरूपण-प्रस्तुत ग्यारह सूत्रों (सू. ३४३ से ३५३ तक) में सामान्य देव-देवियों, औधिक भवनवासी देव-देवियों तथा असुरकुमार से स्तनितकुमार देव-देवियों (पर्याप्तक-अपर्याप्तकसहित) तक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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