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________________ ३०६] [प्रज्ञापना सूत्र ___ संख्यात-असंख्यात-अनन्तप्रदेशी-परमाणुपुद्गलों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्रों में द्रव्य, प्रदेश और द्रव्य-प्रदेश की दृष्टि से अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। पाठ सुगम है। यहाँ सर्वत्र अल्पबहुत्वभावना में पुद्गलों का वैसा स्वभाव ही कारण माना गया है। क्षेत्र की प्रधानता से पुद्गलों का अल्पबहुत्व – एकप्रदेश में अवगाढ़ (आकाश के एक प्रदेश में स्थित) पुद्गल (द्रव्यापेक्षया) सबसे कम हैं। यहाँ क्षेत्र की प्रधानता से विचार किया गया है। इसलिए आकाश के एक प्रदेश में जो भी परमाणु, संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी तथा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध अवगाढ़ हैं, उन सब को एक ही राशि में परिगणित करके 'एकप्रदेशावगाढ़' कहा गया है। इस दृष्टि से संख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल पूर्वोक्त की अपेक्षा द्रव्यविवक्षा से संख्यातगुणे हैं। यहाँ यह बात ध्यान में रखना चाहिए कि आकाश में दो प्रदेशों में द्वयणुक भी रहता है, त्र्यणुक भी और असंख्यात प्रदेशी अनन्तप्रदेशी स्कन्ध भी रहता है, किन्तु क्षेत्र की अपेक्षा से उन सबकी एक ही राशि है। इसी प्रकार तीन प्रदेशों में त्र्यणुक से लेकर अनन्ताणुक स्कन्ध तक रहते हैं, उनकी भी एक राशि समझनी चाहिए। इस दृष्टि से एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गलों की अपेक्षा द्विप्रदेशावगाढ़, द्विप्रदेशावगाढ़ की अपेक्षा त्रिप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्य, इसी प्रकार चारप्रदेशावगाढ़, पंचप्रदेशावगाढ़, यावत् संख्यात-प्रदेशावगाढ़ पुद्गलद्रव्य द्रव्य की विवक्षा से उत्तरोत्तर संख्यातगुणे अधिक है। उनकी अपेक्षा असंख्यातप्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यविवक्षा से असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि असंख्यात के असंख्यात भेद कहे गए हैं। इसी प्रकार द्रव्यार्थतासूत्र, प्रदेशार्थतासूत्र एवं द्रव्यप्रदेशार्थता सूत्र सुगम होने से सर्वत्र घटित कर लेना चाहिए। काल एवं भाव की दृष्टि से पुद्गलों का अल्पबहुत्व-काल की अपेक्षा से—एक समय की स्थिति से लेकर अनन्तसमयों तक की स्थिति वाले पदगलों का अल्पबहत्व भी यथायोग्य समझ लेना चाहिए। भाव की अपेक्षा से—काले आदि ५ वर्ण, दो गन्ध, तिक्त, कटु आदि पांच रस और शीत, उष्ण स्निग्ध और रूक्ष दन बोलों का अल्पबहुत्व मूलपाठ में कथित काले वर्ण के समान समझ लेना चाहिए। एकगुण काले पुद्गलों के अल्पबहुत्व की वक्तव्यता सामान्य पुद्गलों की तरह कहनी चाहिए। यथा -१. सबसे कम अनन्तप्रदेशी स्कन्ध एकगुण काले हैं, २. द्रव्य की अपेक्षा से परमाणुपुद्गल एकगुण काले अनन्तगुणे हैं, (उनसे) संख्यातप्रदेशी स्कन्ध एकगुण काले संख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध एकगुण काले असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार प्रदेश की अपेक्षा से समझना चाहिए। कर्कश, मृदु, गुरु और लघु स्पर्श का प्रत्येक का अल्पबहुत्व एकप्रदेश-अवगाढ़ के समान समझना चाहिए। यथा—एकप्रदेशावगाढ़ एक गुण कर्कशस्पर्श द्रव्यार्थरूप से सबसे कम हैं, उनसे संख्यातप्रदेशावगाढ़ एकगुण कर्कशस्पर्श पुद्गल द्रव्यार्थरूप से संख्यातगुणे हैं, उनसे असंख्यातप्रदेशावगाढ़ एकगुण कर्कशस्पर्श द्रव्यार्थरूप से असंख्यातगुणे हैं, इत्यादि। इसी प्रकार संख्यातगुण कर्कशस्पर्श असंख्यातगुण कर्कशस्पर्श एवं अनन्तगुण कर्कशस्पर्श के अल्पबहुत्व के विषय में समझ लेना चाहिए। १. प्रज्ञापनसूत्र, मलय. वृत्ति, पंत्राक १६१
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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