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तृतीय बहुवक्तव्यतापद]
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[३३२ प्र.] भगवन् ! इन एक समय की स्थिति वाले, संख्यात समय की स्थिति वाले और असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों में से द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से एवं द्रव्य तथा प्रदेश की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं?
- [३३२ उ.] गौतम! १. द्रव्य की अपेक्षा से सबसे अल्प एक समय की स्थिति वाले पुद्गल हैं, २. (उनकी अपेक्षा) संख्यात समय को स्थिति वाले पुद्गल, द्रव्य की अपेक्षा से संख्यातगुणे हैं, ३. (उनकी अपेक्षा) असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं। प्रदेशों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व —१. सबसे कम, एक समय की स्थिति वाले पुद्गल, प्रदेशों की अपेक्षा से हैं, २. (उनकी अपेक्षा) संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल, प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणे हैं, ३ (उनकी अपेक्षा) असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल, प्रदेशों की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं । द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा से अल्पबहुत्व -१. द्रव्य एवं प्रदेश की अपेक्षा से सबसे कम पुद्गल, एक समय की स्थिति वाले हैं, २. संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल, द्रव्य की अपेक्षा से संख्यातगुणे हैं, ३. (इनकी अपेक्षा) वे संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल) ही प्रदेशों की अपेक्षा से संख्यातगुणे हैं, ४. (इनसे) असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गल, द्रव्य की अपेक्षा से असंख्यातगुणे हैं, ५. (और इनसे भी) वे (असंख्यात-समयस्थितिक पुद्गल) ही प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणे हैं।
३३३. एतेसि णं भंते! एगगुणकालगाणं संखेज्जगुणकालगाणं असंखेन्जगुणकालगाणं अणंतगुणकालगाण य पोग्गलाणं दव्वट्ठयाए पदेसट्ठयाए दवट्ठपदेसट्ठयाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? __गोयमा! जहा परमाणुपोग्गला (सु. ३३०) तह भाणितव्वा। एवं संखेजगुणकालयाण वि। एवं सेसा वि वण्ण-गंध-रसा भाणितव्वा। फासाणं कक्खड-मउय - गरुय-लहुयाणं जधा एगपदेसोगाढाणं (सु. ३३१) भणितं तहा भाणितव्वं । अवसेसा फासा जधा वण्णा भणिता तथा भाणितव्वा। दारं २६।
__ [३३३ प्र.] भगवन् ! इन एकगुण काले, संख्यातगुणे काले, असंख्यातगुणे काले और अनन्तगुण काले पुद्गलों में से, द्रव्य की अपेक्षा से, प्रदेशों की अपेक्षा से और द्रव्य तथा प्रदेश की अपेक्षा से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[३३३ उ.] गौतम! जिस प्रकार परमाणुपुद्गल के विषय में (सू. ३३० में) कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। इसी प्रकार संख्यातगुणे काले (एवं असंख्यातगुण काले तथा अनन्तगुण काले) पुद्गलों के विषय में भी (पूर्ववत् सू. ३३० के अनुसार) समझ लेना चाहिए। इसी प्रकार शेष वर्ण (नीले, लाल, पीले आदि) तथा (समस्त) गन्ध एवं रस के (एकगुण से अनन्तगुण तक के) पुद्गलों के अल्पबहुत्व के सम्बन्ध में कहना चाहिए तथा कर्कश, मृदु (कोमल), गुरु और लघु स्पर्शों के (अल्पबहुत्व के) विषय में भी जिस प्रकार (सू. ३३१ में) एक प्रदेशावगाढ़ आदि का (अल्पबहुत्व)