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________________ २७६] [प्रज्ञापना सूत्र तेईसवाँ जीवद्वार : जीवादि का अल्पबहुत्व '२७५. एतेसि णं भंते! जीवाणं पोग्गलाणं अद्धासमयाणं सव्वदव्वाणं सव्वपदेसाणं सव्वपज्जवाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा १, पोग्गला अणंतगुणा २, अद्धासमया अणंतगुणा ३, सव्वदव्व विसेसाहिया, ४ सव्वपदेसा अणंतगुणा ५, सव्वपज्जवा अणंतगुणा ६। दारं २३॥ [२७५ प्र.] भगवन् ! इन जीवों, पुद्गलों, अद्धा-समयों, सर्वद्रव्यों, सर्वप्रदेशों और सर्वपर्यायों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२७५ उ.] गौतम! १. सबसे अल्प जीव हैं, २. (उनसे) पुद्गल अनन्तगुण हैं, ३. (उनसे) अद्धा-समय अनन्तगुणे हैं, ४. (उनसे)सर्वद्रव्य विशेषाधिक हैं, ५. (उनसे) सर्वप्रदेश अनन्तगुण हैं (और उनसे भी) ६. सर्वपर्याय अनन्तगुणे हैं। तेईसवां (जीव) द्वार ॥ २३॥ __विवेचन तेईसवाँ जीवद्वार - प्रस्तुत सूत्र (२७५) में जीव, पुद्गल, काल, सर्वद्रव्य, सर्वप्रदेश, और सर्वपर्याय, इनके परस्पर अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। जीवादि के अल्पबहुत्व की युक्तिसंगतता—सबसे कम जीव, उनसे अनन्तगुणे पुद्गल तथा उनसे भी अनन्तगुणे (अद्धासमय), इस सम्बन्ध में पूर्वोक्त युक्ति से विचार कर लेना चाहिए। अद्धासमयों से सर्वद्रव्य विशेषाधिक हैं, क्योंकि पुद्गलों से जो अद्धासमय अनन्तगुणे कहे गए हैं, वह प्रत्येक अद्धासमय द्रव्य हैं, अतः द्रव्य के निरूपण में वे भी ग्रहण किये जाते हैं। साथ ही अनन्त जीव-द्रव्यों, समस्त पुद्गल द्रव्यों, धर्म, अधर्म एवं आकाशास्तिकाय, इन सभी का द्रव्य में समावेश हो जाता है, ये सभी मिल कर भी अद्धासमयों से अनन्तवें भाग होने से उन्हें मिला देने पर भी सर्वद्रव्य, अद्धासमयों से विशेषाधिक हैं। उनकी अपेक्षा सर्वप्रदेश अनन्तगुणे हैं, क्योंकि आकाश अनन्त है। प्रदेशों से सर्वपर्याय अनन्तगुणे हैं, एक-एक आकाशप्रदेश में अनन्त-अनन्त अगुरुलघुपर्याय होते हैं। चौबीसवाँ क्षेत्रद्वार : क्षेत्र की अपेक्षा से ऊर्ध्वलोकादिगत विविध जीवों का अल्पबहुत्व २७६. खेत्ताणुवाएणं सव्वत्थोवा जीवा उड्डलोयतिरियलोए १, अहेलोयतिरियलाए विसेसाहिया २, तिरियलोए असंखेज्जगुणा ३, तेलोक्के असंखेज्जगुणा ४, उड्डलोए असंखेज्जगुणा ५, अहेलोए विसेसाहिया ६। [२७६] क्षेत्र की अपेक्षा से १. सबसे कम जीव ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोक में हैं, २. (उनसे) अधोलोक-तिर्यग्लोक में विशेषाधिक हैं, ३. (उनसे) तिर्यग्लोक में असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनकी अपेक्षा) त्रैलोक्य में (तीनों लोकों में अर्थात् तीनों लोकों का स्पर्श करने वाले असंख्यातगुणे हैं ५. (उनकी अपेक्षा) ऊर्ध्वलोक में असंख्येयगुणे हैं, ६. (उनसे भी) अधोलोक में विशेषाधिक हैं। १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १४३
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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