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________________ २६४] [प्रज्ञापना सूत्र जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं। [१६१ उ.] गौतम! १. सबसे अल्प संयत जीव हैं, २. (उनसे) संयतासंयत असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत जीव अनन्तगुणे हैं (और उनसे भी) ४. असंयत जीव अनन्तगुणे हैं। बारहवां (संयत) द्वार ॥ १२॥ विवेचन—बारहवाँ संयतद्वार : संयत आदि की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्र (२६१) में संयत, असंयत, संयतासंयत, एवं नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत की दृष्टि से जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। सबसे थोड़े संयत हैं, क्योंकि मनुष्यलोक में वे उत्कृष्टतः (अधिक से अधिक), कोटिसहस्रपृथक्त्व, अर्थात्- दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ तक ही पाए जाते हैं। उनकी अपेक्षा संयतासंयत (देशविरत) असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि मनुष्य के अतिरिक्त असंख्यात निर्यचपंचेन्द्रियों में भी देशविरति पाई जाती है। उनसे नोसंयत-नोअसंयत (नोसंयतासंयत)अनन्तगुणे हैं, क्योंकि जो संयत, असंयत तथा संयतासंयत तीनों नहीं कहे जा सकते , ऐसे सिद्ध जीव अनन्त हैं। उनसे असंयत अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव भी असंयत हैं और वे अकेले ही सिद्धों से अनन्तगुणे हैं। तेरहवाँ उपयोगद्वार : उपयोगद्वार की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व २६२. एतेसि णं भंते! जीवाणं सागारोवउत्ताणं अणागारोवउत्ताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? । गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अणागारोवउत्ता १, सागरोवउत्ता संखेज्जगुणा २। दारं १३॥ _ [२६२ प्र.] भगवन् ! इन साकारोपयोग-युक्त और अनाकारोपयोग-युक्त जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२६२ उ.] गौतम! १. सबसे अल्प अनाकारोपयोग वाले जीव हैं, २. (उनसे) साकारोपयोग वाले जीव संख्यातगुणे हैं। .. विवेचन तेरहवाँ उपयोगद्वार : उपयोग की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्र (२६२) में साकारोपयोगयुक्त और अनाकारोपयोगयुक्त जीवों के अल्पबहुत्व की चर्चा की गई है। अनाकारोपयोग का काल थोड़ा होता है, जबकि साकारोपयोगकाल उससे असंख्यातगुणा अधिक होता है। इसीलिए कहा गया है कि पृच्छासमय में अनाकारोपयोग- (दर्शनोपयोग) काल थोड़ा होने से वे बहुत थोड़े पाए जाते हैं, उनकी अपेक्षा साकारोपयोग-(ज्ञानोपयोग), जीव संख्यातगुणे होते हैं। क्योंकि साकारोपयोगकाल लम्बा होने से पृच्छा के समय वे बहुत संख्या में पाये जाते हैं। १. प्रज्ञापना . म. वृत्ति , पत्रांक १३५ २. "कोडिसहस्सपुहुत्तं मणुयलोए संजयाणं" - प्रज्ञापना. म. वृत्ति, पृ. १३८ ३. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति पत्रांक १३८
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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