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________________ २५२] [ प्रज्ञापना सूत्र हैं, ११. (उनसे) बादर निगोद अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, १२. ( उनसे) बादर पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, १३. (उनसे) बादर अप्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, १४. ( उनसे) बादर वायुकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, १५. ( उनसे) सूक्ष्म तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, १६. (उनसे) सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, १७. ( उनसे ) सूक्ष्म अप्कायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, १८. ( उनसे ) सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, १९, (उनसे) सूक्ष्म तेजस्कायिक पर्याप्तक असंख्यात - गुणे हैं, २०. ( उनसे) सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, २१. (उनमें सूक्ष्म अप्कायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, २२. ( उनसे ) सूक्ष्म वायुकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, २३. (उनसे) सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, २४. ( उनसे) सूक्ष्म निगोद पर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, २५. (उनसे) बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्तक अनन्तगुणे हैं, २६. (उनसे) बादर पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं, २७ ( उनसे) बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, २८ . ( उनसे ) बादर पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं, २९ (उनसे) बादर जीव विशेषाधिक हैं, ३०. ( उनसे) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ३१. (उनसे) सूक्ष्म अपर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं; ३२. (उनसे) सूक्ष्म वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, ३३. ( उनसे) सूक्ष्म पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं, (और उनसे भी) ३४. सूक्ष्म जीव विशेषाधिक हैं। चतुर्थ - द्वा ॥ ४ ॥ विवेचन – कायद्वार के अन्तर्गत सूक्ष्म - बादर-कायद्वार - प्रस्तुत १५ सूत्रों (सू. २३७ से २५१ तक) में सूक्ष्म और बादर को लेकर कायद्वार के माध्यम से विभिन्न पहलुओं से अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। १. समुच्चय में सूक्ष्म जीवों का अल्पबहुत्व - सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव सबसे अल्प हैं, वे असंख्यात लोकाकाश प्रदेश के बराबर हैं । इनकी अपेक्षा सूक्ष्म पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रचुर असंख्यात लोकाकाश प्रदेशों के बराबर हैं । इनसे सूक्ष्म अप्कायिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रचुर असंख्येय लोकाकाश प्रदेशों के बराबर हैं। इनसे सूक्ष्म वायुकायिक विशेषाधिक हैं; क्योंकि वे प्रचुरतम असंख्यात लोकाकाश प्रदेश-प्रमाण हैं। उनकी अपेक्षा सूक्ष्म निगोद असंख्यातगुणे हैं। जो अनन्त जीव एक शरीर के आश्रय में रहते हैं, वे निगोद जीव कहलाते हैं । निगोद दो प्रकार के होतें हैं— सूक्ष्म और बादर। सूरणकन्द आदि में बादर निगोद हैं, सूक्ष्म निगोद समस्त लोक में व्याप्त हैं । वे एक-एक गोलक में असंख्यात असंख्यात होते हैं । इसलिए वे वायुकायिकों से असंख्यात - गुणे हैं। उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक अनन्तगुणे हैं, क्योंकि प्रत्येक निगोद में अनन्त - अनन्त जीव होते हैं । उनकी अपेक्षा सामान्य सूक्ष्मजीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि सूक्ष्म पृथ्वीकाय आदि का भी उनमें समावेश हो जाता है। २. सूक्ष्म - अपर्याप्तक जीवों का अल्पबहुत्व - सूक्ष्म अपर्याप्तक जीवों का अल्पबहुत्व भी पूर्वोक्त क्रम से समझ लेना चाहिए । ३. सूक्ष्म पर्याप्तक जीवों का अल्पबहुत्व — इसके अल्पबहुत्व का क्रम भी पूर्ववत् है ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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