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________________ [२४९ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] असंखेजगुणा २, सुहुमपुढविकाइया अपज्जत्तया असंखेन्जगुणा ३, सुहुमपुढविकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा ४। __ [२५०-२ प्र.] भगवन् ! इन सूक्ष्म पृथ्वीकायिकों और बादर पृथ्वीकायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? । [२५०-२ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े बादर पृथ्वीकायिक-पर्याप्तक हैं, २. (उनसे) बादर पृथ्वीकायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं (और उनसे भी) ४. सूक्ष्म पृथ्वीकायिक-पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं। [३] एएसि णं भंते! सुहुमआउकाइयाणं बादरआउकाइयाण य पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं कतरे करतेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरआउकाइया पज्जत्तया १, बादरआउकाइया अपज्जत्तया असंखेजगुणा २, सुहुमआउकाइया अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा ३, सुहुमआउकाइया पज्जत्तया संखेज्जगुणा ४। . [२५०-३ प्र.] भगवन् ! इन सूक्ष्म अप्कायिकों और बादर अप्कायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२५०-३ उ.] गौतम! १. सबसे अल्प बादर अप्कायिक-पर्याप्तक हैं, २. (उनसे) बादर अप्कायिकअपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं; ३. (उनसे) सूक्ष्म अप्कायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं। (और उनसे भी) ४. सूक्ष्म अप्कायिक-पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं। [४] एएसि णं भंते! सुहुमतेउकाइयाणं बादरतेउकाइयाण य पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तगा १, बादरतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेजगुणा २, सुहुमतेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ३, सुहुमतेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ४। [२५०-४ प्र.] भगवन्! इन सूक्ष्म तेजस्कायिकों और बादर तेजस्कायिकों के पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [२५०-४ उ.] गौतम! १. सबसे कम बादर तेजस्कायिक-पर्याप्तक हैं, २. (उनसे) बादर तेजस्कायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) सूक्ष्म तेजस्कायिक-अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे भी) सूक्ष्म तेजस्कायिक-पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं। __ [५] एएसि णं भंते सुहुमवाउकाइयाणं बादरवाउकाइयाण य पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा बादरवाउकाइया पज्जत्तया १, बादरवाउकाइया अपज्जत्तया
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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