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________________ = १पद तत्त्व इन्द्रियों की क्रमशः वृद्धि बतलाया है। दूसरे पद में जीवों की स्थानभेद से विचारणा की गई है। इसका क्रम भी प्रथम पद की भाँति इन्द्रियप्रधान ही है। जैसे—वहाँ एकेन्द्रिय कहा, वैसे ही यहां पृथ्वीकाय, अप्काय आदि कायों को लेकर भेदों का निरूपण किया गया है। तृतीय पद से लेकर शेष पदों में जीवों का विभाजन, , गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार, भाषक, परित्त, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव, अस्तिकाय, चरम, जीव, क्षेत्र, बंध इन सभी दृष्टियों से किया गया है। उनके अल्पबहुत्व का भी विचार किया गया है। अर्थात् प्रज्ञापना में तृतीय पद के पश्चात् के पदों में कुछ अपवादों४० को छोड़कर सर्वत्र नारक से लेकर चौबीस दण्डकों में विभाजित जीवों की विचारणा की गई है। विषय विभाग आचार्य मलयगिरि ने प्रज्ञापना सूत्र में आई हुई दूसरी गाथा की व्याख्या करते हुए विषय-विभाग का सम्बन्ध जीव, अजीव आदि सात तत्त्वों के निरूपण के साथ इस प्रकार संयोजित किया है १-२. जीव-अजीव पद –१, ३, ५, १० और १३ = ५ पद ३. आस्रव पद - १६, २२ = २ पद ४. बन्धपद -२३ = १ पद ५-७. संवर, निर्जरा और मोक्ष पद -३६ • शेष पदों में क्वचित् जीवादि तत्त्वों में से यथायोग्य किसी तत्त्व का निरूपण है। जैन दृष्टि से सभी तत्त्वों का समन्वय द्रव्य, क्षेत्र , काल और भाव में किया गया है। अतः आचार्य मलयगिरि ने द्रव्य का समावेश प्रथम पद में, क्षेत्र का द्वितीय में, काल का चतुर्थ पद में और भाव का शेष पदों में समावेश किया है। प्रज्ञापना का भगवती विशेषण पाँचवें अंग का नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है और उसका विशेषण 'भगवती' है। प्रज्ञापना को भी 'भगवती' विशेषण दिया गया है, जबकि अन्य किसी भी आगम के साथ यह विशेषण नहीं लगाया गया है। यह विशेषण प्रज्ञापना की महत्ता—विशेषता का प्रतीक है। भगवती में प्रज्ञापना सूत्र के एक दो, पाँच, छह, ग्यारह, पन्द्रह, सत्तरह, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस पदों के अनुसार विषय की पूर्ति करने की सूचना है। यहाँ पर यह ज्ञातव्य है कि प्रज्ञापना उपांग होने पर भी भगवती आदि का सूचन नहीं किया गया है। इसके विपरीत भगवती में प्रज्ञापना का सूचन है। इसका मूल कारण यह है कि प्रज्ञापना में जिन विषयों की चर्चाएं की गई हैं, उन विषयों का उसमें सांगोपांग वर्णन है। ___महायान बौद्धों में 'प्रज्ञापारमिता' ग्रन्थ का अत्यधिक महत्त्व है। अतः अष्टसाहसिका प्रज्ञापारमिता का भी अपरनाम 'भगवती' मिलता है।४१ ४०. इस अपवाद के लिए देखिए, पद- १३, १८, २१. ४१. शिक्षा समुच्चय, पृ० १०४-११२, २०० [३१ ]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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