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[ प्रज्ञापना सूत्र
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कम है, फिर नीचे के देवों में क्रमशः बढ़ते-बढ़ते सौधर्म देवों की संख्या सबसे अधिक बताई गई है । पर मनुष्य लोक के नीचे भवनपति देव हैं, उनकी संख्या सौधर्म से अधिक है, उससे ऊँचे होते हुए भी व्यन्तर तथा ज्योतिष्क देवों की संख्या उत्तरोत्तर अधिक है। सबसे कम संख्या मनुष्यों की है, इसी कारण मनुष्यभव दुर्लभ माना जाता है। जैसे-जैसे इन्द्रियां कम हैं, वैसे-वैसे जीवों की संख्या अधिक होती है, अर्थात् विकसित जीवों की अपेक्षा अविकसित जीवों की संख्या अधिक है । सिद्ध (पूर्णताप्राप्त ) जीवों की संख्या एकेन्द्रिय जीवों से कम है। सबसे नीची सातवें नरक में और सर्वोच्च अनुत्तर देवलोक में सबसे कम जीव हैं, इस पर से ध्वनित होता है, जैसे अत्यन्त पुण्यशाली कम होते हैं, वैसे अत्यन्त पापी भी कम हैं।
१. (क) पण्णवणासुत्तं भा. २, प्रस्तावना पृ. ५४ (ख) षट्खण्डागम पुस्तक ७, पृ. ५७५