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________________ २०४] [प्रज्ञापना सूत्र असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे य नाणे य। सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥१६९॥ केवलणाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुण-भावे। पासंति सव्वतो खलु के वलदिट्ठीहऽणंताहिं ॥१७०॥ न वि अस्थि माणुसाणं तं सोक्खं न वि य सत्वदेवाणं। जं सिद्धाणं सोखं अव्वाबाहं उवगयाणं ॥१७१॥ सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडितं अणंतगुणं। ण वि पावे मुक्तिसुहं णंताहिं वि वग्गवग्गूहि ॥ १७२॥ सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडितो जइ हवेज्जा। सोऽणंतवग्गभइतो सव्वागासे ण माएज्जा॥१७३॥ जह णाम कोइ मेच्छो णगरगुणे बहुविहे वियाणंती। न चएइ परिक हे उं उवमाए तहिं असंतीए॥ १७४॥ इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं, णत्थि तस्स ओवम्म। किंचि विसेसेणेत्तो सारिक्खमिणं सुणह वोच्छं ॥१७५॥ जह सव्वकामगुणितं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोइ। तण्हा-छुहाविमुक्को अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो॥१७६ ॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं जेव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठंति सुही सुहं पत्ता॥ १७७॥ सिद्ध त्ति य बुद्ध त्ति य पारगत त्ति स परंपरगत त्ति। उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य ॥ १७८॥ णित्थिन्नसव्वदुक्खा जाति-जरा-मरणबंधणविमुक्का। अव्वाबाहं सोक्खं अणुहुं ती सासयं सिद्धा॥ १७९॥ ॥ पण्णवणाए भगवईए बिइयं ठाणपयं समत्तं॥ [२११ प्र.] भगवन् ! सिद्धों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन्! सिद्ध कहाँ निवास करते हैं ? [२११ उ.] गौतम! सर्वार्थसिद्ध महाविमान की ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से बारह योजन ऊपर बिना व्यवधान के, ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी कही है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई पैंतालीस लाख योजन है। उसकी परिधि एक करोड़ बयालीस लाख, तीस हजार, दो सौ उनचास योजन से कुछ अधिक है। १. ग्रन्थाग्रम् १५००
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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