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[प्रज्ञापना सूत्र असरीरा जीवघणा उवउत्ता दंसणे य नाणे य। सागारमणागारं लक्खणमेयं तु सिद्धाणं ॥१६९॥ केवलणाणुवउत्ता जाणंती सव्वभावगुण-भावे। पासंति सव्वतो खलु के वलदिट्ठीहऽणंताहिं ॥१७०॥ न वि अस्थि माणुसाणं तं सोक्खं न वि य सत्वदेवाणं। जं सिद्धाणं सोखं अव्वाबाहं उवगयाणं ॥१७१॥ सुरगणसुहं समत्तं सव्वद्धापिंडितं अणंतगुणं। ण वि पावे मुक्तिसुहं णंताहिं वि वग्गवग्गूहि ॥ १७२॥ सिद्धस्स सुहो रासी सव्वद्धापिंडितो जइ हवेज्जा। सोऽणंतवग्गभइतो सव्वागासे ण माएज्जा॥१७३॥ जह णाम कोइ मेच्छो णगरगुणे बहुविहे वियाणंती। न चएइ परिक हे उं उवमाए तहिं असंतीए॥ १७४॥ इय सिद्धाणं सोक्खं अणोवमं, णत्थि तस्स ओवम्म। किंचि विसेसेणेत्तो सारिक्खमिणं सुणह वोच्छं ॥१७५॥ जह सव्वकामगुणितं पुरिसो भोत्तूण भोयणं कोइ। तण्हा-छुहाविमुक्को अच्छेज्ज जहा अमियतित्तो॥१७६ ॥ इय सव्वकालतित्ता अतुलं जेव्वाणमुवगया सिद्धा। सासयमव्वाबाहं चिट्ठंति सुही सुहं पत्ता॥ १७७॥ सिद्ध त्ति य बुद्ध त्ति य पारगत त्ति स परंपरगत त्ति। उम्मुक्ककम्मकवया अजरा अमरा असंगा य ॥ १७८॥ णित्थिन्नसव्वदुक्खा जाति-जरा-मरणबंधणविमुक्का। अव्वाबाहं सोक्खं अणुहुं ती सासयं सिद्धा॥ १७९॥
॥ पण्णवणाए भगवईए बिइयं ठाणपयं समत्तं॥ [२११ प्र.] भगवन् ! सिद्धों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन्! सिद्ध कहाँ निवास करते हैं ?
[२११ उ.] गौतम! सर्वार्थसिद्ध महाविमान की ऊपरी स्तूपिका के अग्रभाग से बारह योजन ऊपर बिना व्यवधान के, ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी कही है, जिसकी लम्बाई-चौड़ाई पैंतालीस लाख योजन है। उसकी परिधि एक करोड़ बयालीस लाख, तीस हजार, दो सौ उनचास योजन से कुछ अधिक है।
१. ग्रन्थाग्रम् १५००