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[प्रज्ञापना सूत्र
चित्तचिंधगता सुरूवा महिड्डीया महज्जुइया महायसा महब्बला महाणुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडय-तुडियर्थभियभुया अंगय-कुंडल-मट्ठगंडयलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउली कल्लाणगपवरवत्थ-परिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्डीए दिव्वाए जुईए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा। ते ण तत्थ साणं साणं भवणावाससतसहस्साणं साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं साणं तायत्तीसाणं साणं साणं लोगपालाणं साणं साणं अग्गमहिसीणं साणं साणं परिसाणं साणं साणं अणियाणं साणं साणं अणियाधिवतीणं साणं साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं भवणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा महताऽहतणट्ट-गीत-वाइयतंती-तल-ताल-तुडिय-घणमुइंगपडुप्पवाइयरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणा विहरंति। ___ [१७८-१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त अपर्याप्त असुरकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? असुरकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ?
[१७८-१ उ.] गौतम! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाहन करके और नीचे एक हजार योजन (प्रदेश) छोड़ कर, बीच में (स्थित) जो एक लाख अठहत्तर हजार योजन (प्रदेश है,) वहाँ असुरकुमारदेवों के चौंसठ लाख भवन-आवास हैं, ऐसा कहा गया है। .. वे भवन (भवनावास) बाहर से गोल, अंदर से चौरस (चौकोर), और नीचे से पुष्कर-(नीलकमल) कर्णिका के आकार में संस्थित हैं। (उन भवनों के चारों ओर) गहरी और विस्तीर्ण खाइयाँ और परिखाएँ खुदी हुई हैं; जिनका अन्तर स्पष्ट (प्रतीत होता) है। (यथास्थान) प्राकारों (परकोटों), अटारियों, कपाटों, तोरणों और प्रतिद्वारों से भवनों के एकदेशभाग सुशोभित होते हैं, (तथा वे भवन) यंत्रों, शतघ्नियों (महाशिलाओं या महायष्टियों); मूसलों और मुसुण्ढी नामक शस्त्रों से (चारों ओर से) वेष्टित (घिरे हुए) होते हैं; तथा शत्रुओं द्वारा अयोध्य (युद्ध न कर सकने योग्य), सदाजय, सदागुप्त (सदैव सुरक्षित) तथा अड़तालीस कोठों से रचित, अड़तालीस वनमालाओं से सुसज्जित, क्षेममय, शिवमय, किंकर-देवी के दण्डों से उपरक्षित हैं। (गोबर आदि से) लीपने और (चूने आदि से) पोतने के कारण (वे भवन) प्रशस्त रहते हैं। (उन भवनों पर (गोशीर्षचन्दन और सरस रक्तचन्दन से (लिप्त) पांचों अंगुलियों (वाले हाथ) के छापे लगे होते हैं; (यथास्थान) चन्दन के (मांगल्य) कलश रखे होते हैं। उनके तोरण और प्रतिद्वारदेश के भाग चन्दन के घड़ों से सुशोभित (सुकृत) होते हैं। (वे भवन) ऊपर से नीचे तक लटकती हुई लम्बी विपुल एवं गोलाकार पुष्पमालाओं के समूह से युक्त होते हैं; तथा