SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] [ १०५ यह है उक्त दर्शनार्य (मनुष्यों) का (विवरण) । १२०. से किं तं चरितारिया ? चरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा— सरागचरित्तारिया य वीयरागचरित्तारिया य । [१२० प्र.] चारित्रार्य (मनुष्य) कैसे होते हैं ? [१२०उ.] चारित्रार्य (मनुष्य) दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा वीतरागचारित्रार्य | १२१. से किं तं सरागचरित्तारिया ? सरागचरित्तारिया दुविहा पन्नत्ता । तं जहा – सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य बायरसंपरायसरागचरित्तारिया य । - सरागचारित्रार्य और [१२१ प्र.] सरागचारित्रार्य मनुष्य कैसे होते हैं ? [१२१ उ.] सरागचारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं— सूक्ष्मसम्पराय - सराग - चारित्रार्य और बादरसम्पराय - सराग चारित्रार्य । १२२. से किं तं सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया ? सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - पढमसमयसुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य अपढमसमयसुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया य; अहवा सुहुमसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा—संकिलिस्समाणा य विसुज्झमाणा य से त्तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया । [१२२ प्र.] सूक्ष्मसम्पराय - सरागचारित्रार्य किस प्रकार के होते हैं ? [१२२ उ.] सूक्ष्मसम्पराय - सरागचारित्रार्य दो प्रकार के होते हैं – प्रथमसमय-सूक्ष्मसम्परायसरागचारित्रार्य और अप्रथमसमय- सूक्ष्मसम्पराय सरागचारित्रार्य; अथवा चरमसमय- सूक्ष्मसम्परायसरागचारित्रार्य और अचरमसमय- सूक्ष्मसम्पराय - सरागचारित्रार्य । अथवा सूक्ष्मसम्पराय - सराग चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं—संक्लिश्यमान ( ग्यारहवें गुणस्थान से गिर कर दशम गुणस्थान में आये हुए) और विशुद्ध्यमान ( नवम गुणस्थान से ऊपर चढ़ कर दशम गुणस्थान में पहुँचे हुए) । यह हुई, उक्त सूक्ष्मसम्पराय - सरागचारित्रार्य की प्ररूपणा । १२३. से किं तं बादरसंपरायसरागचरित्तारिया ? बादरसंपरायसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा — पढमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य अपढमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य अचरिमसमयबादरसंपरायसरागचरित्तारिया य; अहवा बादरसंपराटसरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा — पडिवाती य अपडिवाती य । से त्तं बादरसंपरा
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy