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साहित्यसेवा
आपका शास्त्र-स्वाध्याय बड़ा ही व्यापक और तलस्पर्शी था। जैन शास्त्रों के महासागर में कौनसा मोती कहां पड़ा है, यह आपके ज्ञान-नेत्रों से ओझल नहीं था। आपके शास्त्रीय वैदुष्य की विलक्षता के कारण ही जैन समाज ने आपको पंजाब सम्प्रदाय के उपाध्याय पद से विभूषित किया। आपने ६० के लगभग ग्रन्थ लिखे, बड़ेबड़े शास्त्रों का भाषानुवाद किया। 'तत्त्वार्थसूत्र जैनागम-समन्वय' आप की अपूर्व रचना है। जर्मन, फ्रांस, अमरीका तथा कनाड़ा के विद्वानों ने भी इस रचना का हार्दिक अभिनन्दन किया था। जैन, बौद्ध और वैदिक शास्त्रों के आप अधिकारी विद्वान् थे। आपकी साहित्य-सेवा जैन-जगत् के साहित्य-गगन पर सूर्य की तरह सदा चमचमाती रहेगी। सहिष्णुता के महासागर
वीरता, धीरता तथा सहिष्णुता के आपश्री महासागर थे। भयंकर से भयंकर संकटकाल में भी आपको किसी ने परेशान नहीं देखा। एक बार लुधियाना में आप की जांघ की हड्डी टूट गयी, उसके तीन टुकड़े हो गये। लुधियाना के क्रिश्चियन हॉस्पीटल में डा. वर्जन ने आपका ऑपरेशन किया। ऑपरेशन-काल में आपको बेहोश नहीं किया गया था, तथापि आप इतने शांत और गम्भीर रहे कि डॉ. वर्जन दंग रहे गये। बरबस उनकी जबान से निकला कि ईसा की शान्ति की कहानियाँ सुना करते थे, परन्तु इस महापुरुष के जीवन में उस शान्ति के साक्षात् दर्शन कर रहा हूँ।
जीवन के संध्याकाल में आपको कैंसर के रोग ने आक्रान्त कर लिया था। तथापि आप सदा शान्त रहते थे। भयंकर वेदना होने पर भी आपके चेहरे पर कभी उदासीनता या व्याकुलता नहीं देखी। लुधियाना जैन बिरादरी के लोग जब डॉक्टर को लाए और डॉक्टर ने जब पूछा-महाराज, आप को क्या तकलीफ है? तब आप ने बड़ा सुन्दर उत्तर दिया। आप बोले-डाक्टर साहब! मुझे तो कोई तकलीफ नहीं, जो लोग आप को लाए हैं, उनको आवश्य तकलीफ है। उनका ध्यान करें। महाराजश्री जी की सहिष्णुता देखकर सभी लोग विस्मित हो रहे थे और कह रहे थे कि कैंसर-जैसे भयंकर रोग के होने पर भी गुरुदेव बिल्कुल शांत हैं,जैसे कोई बात ही नहीं है।
प्रधानाचार्य पद
वि. सं. २००३ लुधियाना में आप पंजाब के स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के आचार्य बनाए गए और वि. सं. २००९ में सादड़ी में आपको श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रधानाचार्य पद से विभूषित किया गया। सचमुच आपका वैदुष्यपूर्ण व्यक्तित्व यत्र, तत्र और सर्वत्र ही प्रतिष्ठा प्राप्त करता रहा है। क्या जैन, क्या अजैन, सभी आपकी आचार तथा विचार सम्बन्धी गरिमा की महिमा को गाते नहीं थकते थे। आज भी लोग जब आपके अगाध शास्त्रीय ज्ञान की चर्चा करते है तो श्रद्धा से झूम उठते हैं।
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