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________________ ८३ प्रथम प्रज्ञापनापद ] गंडीपया अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा - हत्थी हत्थी - पूयणया मंकुणहत्थी खग्गा गंडा, जे arasur तहप्पगारा । से त्तं गंडीपया । [७३ प्र.] वे (पूर्वोक्त) गण्डीपद किस प्रकार के हैं ? rustपद अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हाथी, हस्तिपूतनक, मत्कुणहस्ती, (बिना दांतों का छोटे कद का हाथी), खड्गी और गंडा (गेंडा ) इसी प्रकार जो भी अन्य प्राणी हों, उन्हें गण्डीपद में जान लेना चाहिए। यह हुई गण्डीपद जीवों की प्ररूपणा । ७४. से किं तं सणप्फदा ? सणप्फदा अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा—सीहा वग्घा दीविया अच्छा तरच्छा परस्परा सियाला बिडाला सुणगा कोलसुणगा' कोकंतिया ससगा चित्तगा चित्तलगा, जे यावऽण्णे तहप्पगारा से तं सणप्फदा । - [ ७४. प्र.] वे सनखपद किस प्रकार के हैं ? [७४ उ.] सनखपद अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार — सिंह, व्याघ्र, द्वीपिक ( दीपड़ा), रीछ ( भालू) तरक्ष, पाराशर, शृगाल (सियार), विडाल ( बिल्ली ) । श्वान, कोलश्वान, कोकन्तिक (लोमड़ी), शशक (खरगोश), चीता और चित्तलग ( चिल्लक) । इसी प्रकार के अन्य जो भी प्राणी हैं, वे सब सनखपदों के अन्तर्गत समझने चाहिए। यह हुआ पूर्वोक्त सनखपदों का निरूपण । ७५. [ १ ] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता । तं जहा — सम्मुच्छिमा य गब्भवक्कंतिया य । [७५-१] वे (उपर्युक्त सभी प्रकार के चतुष्पद-स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक) संक्षेप में दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा— सम्मूच्छिम और गर्भज । [ २ ] तत्थ णं जे ते सम्मुच्छिमा ते सव्वे णपुंसगा । [७५-२] उनमें जो सम्मूच्छिम हैं, वे सब नपुंसक हैं । [ ३ ] तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया ते तिविहा पण्णत्ता । तं जहा — इत्थी १ पुरिसा २ णपुंसगा ३। [७५-३] उनमें जो गर्भज हैं, वे तीन प्रकार के कहे गए हैं। यथा-१ स्त्री, २. पुरुष और ३. नपुंसक । [४] एतेसि णं एवमादियाणं ( चउप्पय) थलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं दस जाईकुलकोडिजोणिप्पमुहसयसहस्सा हवंतीति मक्खतं । सेतं चउप्पयथलयर-पंचेंदिय-तिरिक्खजोणिया । [७५-४] इस प्रकार (एकखुर) इत्यादि इन स्थलचर - पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों के पर्याप्तकअपर्याप्तकों के दस लाख जाति - कुल-कोटि- योनिप्रमुख होते हैं, ऐसा कहा है । यह हुआ चतुष्पदस्थलचर-पंचेन्द्रिय-तिर्यञ्चयोनिकों का निरूपण । [ग्रन्थाग्रम् ५०० ] १.
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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